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________________ ॥ २१७६ ॥ ॥ २१७७॥ ॥ २१७८॥ ॥ २१७९॥ ।। २१८०॥ ॥ २१८१॥ ॥ २१८२ ॥ ॥ २१८३॥ ॥ २१८४॥ ॥ २१८५॥ ॥ २१८६॥ ॥ २१८७॥ ॥ २१८८॥ खामेमि चउम्मासिय-मेक्कसि खमह न पुणो इमं काहं । अह संवेगोवगओ, सूरी इय भणिउमाऽऽरद्धो रसगारवाऽऽइविसविहय-चेयणो सुठु बोहिओ तुमए । पंथय ! ता कयमेत्तो, एत्थाऽवत्थाणसोक्खेण अह विहरिउमाऽऽरद्धो, स महप्पा अणिययाए वित्तीए। विहरंतो परियरिओ, पुणरऽवि पोराणसिस्सेहि कालंऽतरे य विहुणिय-रयमलो मलियपबलमोहभडो। सेत्तुंजपव्वयम्मि, निव्वाणमऽणुत्तरं पत्तो इय दोसगुणे नाउं, सीयल-उज्जयविहारचरियाए। अविहारपक्खमाऽऽसज्ज, को णु वट्टेज्ज कुसलऽत्थी किंचपडिबन्धो लहुयत्तं, न जणुवयारो न देसविण्णाणं । नाऽऽणाऽऽराहणमेए, दोसा अविहारपक्खम्मि कालाऽऽइदोसओ पुण, न दब्बओ एस कीरइ नियमा। भावेण उ कायव्वो, संथारगवच्चयाऽऽईहिं इय पावकलिलजलविब्भमाए, संवेगरंगसालाए। परिकम्मविहीपामोक्ख-चउमहामूलदाराए आराहणाए पनरस-पडिदारमयस्स पढमदारस्स । अणिययविहारनामं, सत्तमदारं समत्तमिमं अणिययविहारचरिया, एसा गिहिसाहुगोयरा भणिया। संपइ नरिंदविसयं, एयं चिय किं पि कित्तेमि जम्हा को विहु चिरभूरि-सुकयसंभारभाविकल्लाणो। नरनाहो वि य होउं, अच्चंतं पसमरसरसिओ परलोयभीरुचित्तो, सम्मं विसकप्पकलियविसयसुहो। मोक्खसुहबद्धबुद्धी, आराहणकरणमीहेज्जा तस्स सए च्चिय देसे, जिणिन्दबिबाइं वंदमाणस्स । होज्ज अणिययो विहारो, परदेसे विग्घसब्भावा तहाहिकरडिघडुब्भडसुहडोह-तुरयरहवूहपरिवुडे तम्मि। परदेसेसु वि तित्थाई, वंदिउं संपयट्टम्मि रज्जाऽवहारमाऽऽसंकिऊण, पडिनरवई पकप्पेज्जा। हीरेज्ज व तद्देसो, पडिरिउणा सामिरहिओ त्ति तम्हा भत्ते गुणसंगयम्मि, सत्थऽत्थबोहकुसलम्मि। मंतिम्मि रज्जभारं, आरोविय अप्पतुल्लम्मि साहियजेयव्वगणो, सुत्थीकयमण्डलो महाकोसो। नियनियनियोगसुनिउत्त-भत्तिमन्तप्पहाणजणो अच्चंतपवरपूया-पुरस्सरं लोकपीडमऽकरेंतो। जिणभवणाई वन्देज्ज, निययदेसे च्चिय नरिंदो अह तं अदुट्ठदोघट्ट-घट्टपडिरुद्धरायपहपसरं। सहरिसहरिहेसाऽऽरव-खरखुररवभरियनहविवरं पम्मुक्कहक्कपोक्कार-घोरपाइक्कचक्कपरिकिण्णं । पउरसियछत्तछाइय-दिणयरकरपहकराऽऽभोगं नियदेसट्ठियजिणभवणाण, पेच्छणं आयरेण कुणमाणं । दळु धम्मपसंसं, के के मणुया न कुव्वंति के वा उत्तमजणपूइयं ति, सोमं ति मोक्खहेउं ति । विमंसिऊण जिणधम्म-मेक्कचित्ता न गेण्हंति एवं च सो महप्पा, संपाइयपवरधम्मकायव्वो। कइया वि विसयनिदं, करेइ जिणभणियनीईए कइया वि महामुणिपवर-चरियमेगग्गमाणसो सुणइ । कइया वि मंतिसामन्त-संगओ कुणइ जणचिन्तं धम्मविरोहं कइया वि, पेच्छिउं सव्वहा निरंभेइ । कइया वि निययपरियण-मुवउत्तो एवमुल्लवइ हंहो! निउणं पेहह, संसारे सारमऽस्थि नो किं पि। जंतडिचवलं जीयं, तरंगतरलाओ रिद्धीओ अवरोप्परपडिबन्धा, बन्धा इव दिन्ति निव्वुई नेव। निच्चपगुणो य मच्चू, निस्सारो वत्थुपरिणामो कम्मविवागो अच्वंत-भीसणो सोक्खसंभवो तुच्छो । अस्संखदुक्खकारी, सेविजंतो पमाओ य दुलहो य मणुस्सभवो, दुलहा सद्धम्मकम्मसामग्गी। नीसेसदोसकारण-अतुच्छमिच्छत्तचागेण तइलोक्कचक्कचमढण-विढत्तजयकाममल्लमलणखमो । दुलहो देवो भवजलहि-तारगो वीयरागो वि दुलहा विमुक्कसंगा, गुरुणो सव्वण्णुसासणं दुलहं । लद्धे वि एत्थ धम्मु-ज्जमो न जं तं महऽच्छरियं एवं समीववत्तिण-मऽणुसासित्ता जणं स कइया वि । गीयऽत्थे संविग्गे, मुणिवइणो पज्जुवासेइ ते वि य गम्भीरुत्तीहिं, जुत्तिजुत्ताहिं वागरिन्ति जहा। नरवर! पयईए च्चिय, धीमं तुम्हारिसो पुरिसो जिणवयणाओ नाउं, निबन्धणं असुहकम्मबन्धस्स। अवराहकरे वि परे, न पउस्सेज्जा मणागं पि ।। २१८९॥ ।। २१९०॥ ॥ २१९१॥ ॥ २१९२॥ ॥ २१९३॥ ॥ २१९४ ॥ || २१९५॥ ॥ २१९६॥ ॥ २१९७॥ ॥ २१९८॥ ॥ २१९९॥ ॥ २२००॥ ॥ २२०१॥ ॥ २२०२॥ ॥ २२०३॥ ॥ २२०४॥ ॥ २२०५॥ ॥ २२०६॥ ।। २२०७॥ ॥ २२०८॥ ।। २२०९ ॥ ૬૫
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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