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________________ ॥ २१४१॥ ॥ २१४२॥ ॥ २१४३॥ ॥ २१४४॥ ॥ २१४५ ॥ ॥ २१४६ ॥ ॥ २१४७॥ ॥ २१४८॥ ॥२१४९ ।। ॥२१५० ।। निक्खमणनाणनिव्वाण-ठाणचिइचिन्धजम्मभूमीओ। पेच्छंतो उ जिणाणं, सुविसुद्धं दंसणं कुणइ संवेगं संविग्गाणं, जणइ इय सुविहिओ सुविहियाण । अथिरमइणं च पुणो, जणेइ धम्मम्मि थिरीकरणं संविग्गपरे पासिय, पियधम्मपरे यऽवज्जभीरू य। सयमवि पियथिरधम्मो पायं विहरंतओ होइ चरिया छुहा य तण्हा, सीयं उण्हं च भावियं होइ । अहियासिया य सेज्जा, सम्म अणिययविहारेण सुत्तऽत्थथिरीकरणं, अइसइयऽत्थाण होइ उवलंभो। अइसइयसुयहराणं, पलोयणे विहरमाणस्स निक्खमणपवेसाईसु, आयरियाणं च बहुपयाराणं । सामायारीकुसलो, जायति गणसंपवेसेण साहूण सुहविहारो, निरवज्जो जत्थ सुलहवित्ती य । तं खेत्तं विहरंतो, नाही आराहणाजोग्गं एमाइयं गुणगणं, समीहमाणेण साहुणा निच्चं । अणिययविहारचरियाए, वट्टियव्वं सइ बलम्मि जो पुण रसाऽऽइगिद्धी-वसेण बलवं पि इह पमाएज्ज । न स केवलं मुणीहि, मुंचेज्ज गुणेहि वि अवस्सं पच्चागयसुहभावो, सो च्चिय इह उज्जओ मुणिगुणेहिं । परिवारिज्जइ सज्जो, उभयऽत्थ वि सेलगो नायं तहाहिसेलगपुरम्मि नगरे, आसी निवो सेलगो पुरा तस्स । पउमावई य देवी, ताण सुओ मड्डुगो नाम थावच्चापुत्तमुणिन्द-चलणसेवोवलद्धजिणधम्मो । सो राया नयसारं, भुंजइ निरवज्जरज्जसुहं एगम्मि य पत्थावे, थावच्चापुत्तसूरिपयवित्ती। सुयसूरी विहरंतो, समागओ तत्थ नयरम्मि मियवणउज्जाणम्मि य, समोसढो मुणिजणोचियपएसे । मुणियाऽऽगमो य राया, समागतो वन्दणनिमित्तं तिपयाहिणापुरस्सर-मह तच्चलणुप्पले नमंसित्ता । हरिसवसपुलइयंगो, आसीणो धम्मसवणऽत्थं मुणिवइणा विह संसार-परमनिव्वेयकारिणी तस्स। विसयविरागुप्पायण-पवणा संमोहनिम्महणी संसारसमुत्थसमत्थ-वत्थुविगुणत्तपयडणपहाणा । धम्मकहा सुइसुहवयण-वित्थरेणं कया सुचिरं पडिबुद्धो नरनाहो, परमपमोउब्भवन्तरोमंचो । गुरुचरणे पणमित्ता, जंपिउमेवं समाढत्तो भयवं! जाव नियसुयं, ठवेमि रज्जम्मि ताव तुह पासे । उज्झित्ता रज्जमऽहं, पव्वज्जं संपवज्जामि जुत्तमिणं जाणियभवठितीण, तुम्हारिसाण नरनाह ! । ता एत्तो पडिबन्धं, मा काहिसि थेवमऽवि एत्थ एवं गुरुणा अणुसासिओ य, राया गओ सगेहम्मि। निययपयम्मि निवेसइ, मड्डुगनामं वरकुमार तत्तो कयसिंगारो, सहस्सनरवाहिणीए सिबियाए। आरूढो पंथयपमुह-मंतिसयपंचगाऽणुगओ गन्तूण गुरुसमीवे, उज्झियसंगो पवज्जइ दिक्खं । संवेगसारमऽणुदिण-मुज्जमइ य धम्मकम्मेसु कालक्कमेण एक्कारसाऽवि, अंगाणि सो अहिज्जेइ। दुक्करतवकरणपरो, विहरइ य महीए वाउ व्व अह पंथगपमुहाणं, पंचण्डं मुणिसयाण सुयसूरी । तं सूरित्ते ठविउं, साहुसहस्सेण परियरिओ विहरित्ता बहुकालं, पुंडरियमहानगे कयाऽणसणो। असुरसुरविहियपूओ, निव्वाणपयं समणुपत्तो सो पुण सेलगसूरी, तवोविसेसेहिं अरसविरसेहि। पाणेहिं भोयणेहि य, जातो चम्मऽट्ठिमेत्ततणू गहिओ रोगेहिं पि य, तहाऽवि सत्ताहिओ त्ति विहरंतो। सेलगपुरे पहुत्तो, समोसढो मिगवणुज्जाणे पीइपडिबन्धेण य मड्डुगो, निवो वन्दणट्ठया पत्तो । सोऊण य धम्मकहं, पडिबुद्धो सावगो जातो अह सो सूरि दटुं, सरोगमच्चंतकिससरीरं च । जंपइ अहं भन्ते !, अहापवत्तेण तेगिच्छं कारेमि तुम्ह एसणिय-भत्तपाणोसहाइएणं ति । पडिसुणियं मुणिवइणा, कारविया तयणु से किरिया अह पगुणीभूयतणू वि, पबलरसगारवाऽऽइपडिबद्धो। सूरी मुणिगुणविमुहो, तत्थेव ट्ठाउमाऽऽरद्धो पंथगवज्जेहिं ततो, परिचत्तो सेसएहि साहूहि । अह चउमासगरयणीए, निब्भरं सुहपसुत्तो सो चउमासियाऽइयारं, खामेउं पंथगेण सीसेणं । छिक्को चलणेसु ततो, झत्ति विउद्धो भणति कुद्धो को एस दुरायारो, मं पाएसुं सिरेण घट्टेइ । तेणं भणियं भन्ते!, पंथगनामो अहं साहू ॥ २१५१॥ ॥ २१५२॥ ॥ २१५३॥ ।। २१५४ ॥ ॥ २१५५ ॥ ॥२१५६॥ ॥ २१५७॥ ॥ २१५८॥ ।। २१५९॥ ॥ २१६०॥ ॥ २१६१ ॥ ॥ २१६२॥ ॥ २१६३ ॥ ॥ २१६४॥ ॥ २१६५॥ ॥ २१६६॥ ॥ २१६७॥ ।। २१६८॥ ॥ २१६९॥ ॥ २१७०॥ ॥ २१७१ ॥ ॥ २१७२॥ ॥ २१७३॥ ॥ २१७४ ॥ ॥ २१७५॥ ४
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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