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महुराए नयरीए, जुगप्पहाणो सुयस्स य निहाणो । अणवरयसिस्ससुत्तत्थ-कहणपडिबद्धवावारो अगणियपरिस्समो भव्व-सत्तसद्धम्मदेसणाईसु । नामेण अज्जमंगू, आसि सूरी जणपसिद्धो सो पुण जहुत्त किरिया-कलाववियलो सुहाभिलासी य। सावयकुलपडिबद्धो, पग्गहिओ गारवतिएण अणवस्यभत्तजणदिज्ज-माणपाणऽण्णवत्थलाभेण । तत्थेव चिरं वुत्थो, चिच्चा अब्भुज्जयविहारं अह सिढिलियसामण्णो, निस्सामण्णं पमायमुवचिणिउं। अकयनियदोससुद्धी, मरिऊणं आउविगमम्मि तीए चेव पुरीए, निद्धमणाऽसण्णजक्खभवणम्मि। अच्चंतं किविसिओ, जक्खो होऊण उप्पण्णो मुणिऊण विभंगेणं, पुव्वभवं तो विचिंतिउं लग्गो। हा हा पावेण मए, पमायमयमत्तचित्तेण पत्तं पि विचित्ताऽइसय-रयणपडिपुण्णजिणमयनिहाणं । तक्कहियपवित्तिपरं-मुहेण विहलत्तमुवणीयं माणुस्सखेत्तजाई-पमोक्खसद्धम्महेउसामग्गिं । चरणं पमायभटुं, एत्तो कत्तो लहिस्सामि हा जीव! पाव ! तइया, इड्ढीरसगारवाण विरसत्तं । सत्थऽत्थजाणगेण वि, न लक्खियं किं तए आसि मायंगनिव्विसेसं, किव्विसियसुरत्तणं इमं पत्तो। जाओऽम्हि चिरमऽजोग्गो, विरइपहाणस्स धम्मस्स धी धी सत्थत्थपरि-स्समो ममं धी मईए सुहुमत्तं । धी धी परोवएस-प्पयाणपंडिच्चमच्चंतं - धी भाववियलकिरिया-कलावमणुदिणमणुट्ठियं तं पि। वेसानेवत्थं पिव, परचित्तपसायणामेत्तं इय एवं नियदुच्चरिय-मणुखणं परमजायवेरग्गो। निदंतो दिवसाई, गमेइ गोत्तीनिहित्तो व्व अह तेण पएसेणं, उच्चारमहिं पडुच्च वच्चंते । दळूण निययसिस्से, मुणिणो पडिबोहणऽट्ठाए जक्खपडिमामुहाउ, दीहं निस्सारित्रं ठिओ जीहं । तं च मुणिणो पलोइय, पइदियहं भणिउमाढत्ता जो कोई एत्थ देवो, जक्खो रक्खो व किण्णरो वाऽवि । सो जंपउ पयडं चिय, न कि पि एवं वयं मुणिमो तो सविसायं जक्खेण, जंपियं भो तवस्सिणो सोऽहं । तुब्भाण गुरू किरियाए, मंगुलो अज्जमंगु त्ति तेहिं वुत्तं हा सुयनिहाण!, सिक्खादुगम्मि वि सुदक्ख!। कह हीणजक्खजोणि, गतोऽसि चोज्जं महंतमिमं तेणं भणियं नो किं पि, चोज्जमिह साहुणो महाभागा ! । एस च्चिय होइ गई, सिढिलियसद्धम्मकम्माण 'सावयपडिबद्धाणं, इड्ढिरससायगारवगुरूणं । सीयविहारीणं मारि-साण जिभिंदियजियाण इय मह कुदेवजोणिं, जाणित्ता साहुणो महासत्ता ! । जइ सुगईए कज्जं, ता दुलहं संजमं लड़े परिहरियपमाया, निज्जियाऽणंगजोहा, चरणकरणरत्ता, नाणवंताण भत्ता । परिचइयममत्ता, मोक्खमग्गे पसत्ता, विहरह लहुभूया, भूयरक्खं कुणंता भो भो देवाणुप्पिय !, संमं संबोहिया तए अम्हे । इइ जंपिऊण मुणिणो, पडिवण्णा संजमुज्जोयं इय पुण्णा वि हुवंछिय-सोग्गतिफलसाहिगा गहणसिक्खा। आसेवणसिक्खाए, रहिया नो जायइ कहं पि आसेवणसिक्खा वि हु, असहाय च्चिय गुणाय नो भणिया। अंगारमद्दगस्स व, सम्मं सण्णाणसुण्णस्स तथाहिअस्थि पुर गज्जणयं, सुसाहुगणपरिखुडो विजयसेणो। सूरी सद्धम्मपरो, तत्थ ठिओ मासकप्पेण पच्छिमरयणीसमए, सीसेहिं तस्स सुमिणओ दिट्ठो। पंचसयकलहकलिओ, कोलो वसहीए किल पत्तो विम्हियमणेहिं तेहिं, सुमिणऽत्थं पुच्छिया य तो सूरी । तेहिं कहियं एही, गुरुकोलो साहुगयसहिओ अह उग्गयम्मि सूरे, सोमग्गहसंगओ रविसुओ व्व । कप्पतरुसंडमंडल-सहिओ एरंडरुक्खो व्व पचसयसुमुणिजुत्तो, आयरिओ रुद्ददेवनामोत्ति । पत्तो साहुहि कया, उचिया से सव्वपडिवत्ती अह वत्थव्वा मुणिणो, परिक्खणऽट्ठा निसिम्मि कोलस्स । गुरुवयणेणं खिविलं, काइयभूमिम्मि अंगारे पच्छण्णपएसगया, पलोयमाणा य जाव चिटुंति । पाहुणगसाहुणो ताव, पट्ठिया काइयमहीए १. गोत्ती = कारागृहम्,
॥ १४६२॥ ॥ १४६३॥ ॥१४६४॥ ॥ १४६५॥ ॥ १४६६॥ ॥ १४६७॥ ॥ १४६८॥ ॥१४६९॥ ॥१४७०॥ ॥१४७१ ॥ ॥ १४७२॥ ॥१४७३॥ ॥ १४७४ ॥ ॥ १४७५ ॥ ॥ १४७६ ॥ ॥१४७७॥ ॥१४७८॥ ॥१४७९ ॥ ॥१४८० ॥ ॥१४८१ ॥ ॥१४८२ ॥ ॥१४८३॥
॥१४८४॥ ॥१४८५ ॥ ॥१४८६॥ ॥१४८७ ।।
॥ १४८८॥ ॥१४८९॥ ॥ १४९०॥ ॥१४९१॥ ॥ १४९२ ॥ ॥१४९३॥ ॥१४९४॥
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