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________________ एवं जाया वि अभिक्खणं पि, मणवयणकायकिरियाहिं। आसेविज्जन्त च्चिय, वड्ढइ एसा थिरा य भवे ता होइ अहुन्तावि हु, हुंतीए अहुंतियाए हुन्ता वि । न हु होइ जप्पभावा, भव्वाण इमा गहणसिक्खा ती च्चिय एक्का, नमोऽत्थु सव्वसुहसिद्धिभूमीए। आसेवणसिक्खाए, भवतरुपलयानलसमाए एत्थ य किरियानय-मयमेयं जं सव्वहा वि कज्जत्थी । किरियाए च्चिय सम्मं, जएज्ज निच्वं चिय तहाहि ओवायत्थे, विण्णाए उभयलोगफलसिद्धिं । इच्छन्तेण मइमया, जइयव्वं चेव जत्तेण जम्हा वित्तिलक्खण-पयत्तविरहे न नाणिणो वि इहं । अहिलसियवत्थुसिद्धी, दीसइ अण्णेहि वि जमुत्तं किरिय च्चिय फलजणणी, नो नाणं संजमऽत्थविसयाण। विण्णाया वि सुनिउणं, न नाणमेत्ता सुही होइ तिसिओ वि हु सलिलाइय-मवलोयन्तो वि जाव न पयट्टो। पिवणाऽऽइकिरियाए, तत्तित्तिफलं न ता लहइ अग्गट्ठियइट्ठरसोववेय-भोयणतडोवविट्ठो वि । हत्थमवावारिन्तो, नाणी वि हु मरइ भुक्खाए अइपंडिओ वि वाई, आहसिय परं गतो निवसभाए । वयणमवावारिन्तो, न लहइ अत्थं सलाहं च इय इहलोयफलं पइ, जह वुत्तो तह भवन्तरफलं पि । आसज्ज सो च्चिय विही, जओ जिणिदेहिं भणियमिणं चेइयकूलगणसंघे, आयरियाणं च पवयणसुए य। सव्वेसु वि तेण कयं, तवसंजममुज्जमन्तेण इय जह खाओवसमिग-चरणस्स तहेव खाइगस्सावि । सम्मं पगिट्ठफलसाह-गत्तणं होइ विष्णेयं जम्हा अरिहन्तस्स वि, पत्तस्स वि विमलकेवलाऽऽलोयं । नो ताव नाणओ च्चिय, संपज्जइ मुत्तिसंपत्ती जाव न समत्थकम्मिं-धणग्गितुल्ला परा विसुद्धिकरी । लहुपंचऽक्खरसंगिरण- मेत्तकालप्पमाण नीसेसाऽऽसवसंवर- रूवा एत्थं अपत्तपुव्वा य । सेसकिरियापहाणा, पत्ता चारितकिरियत्ति नायं च एत्थ सो च्चिय, सुरिंददत्तो न जइ मुणन्तो वि । राहं विधंतो ता, परे व्व हीलापयं हुंतो तम्हा इहपरलोइय-फलसंपत्तीए कारणमऽवंझं । आसेवासिक्ख च्चिय, ता इह जत्तो न मोत्तव्वो एवं च नाणकिरिया - नएहिं उद्दिट्ठमुभयपक्खे वि । सिद्धंतुद्दिट्ठविचित्त - जुत्तिनिविहं निसामेत्ता एत्थ मांसलाऽऽमोय-मणहरं फुडियकेयईकोसं । अण्णत्तो दरविदलिय -मवलोइय मालईमउलं तग्गंधलुद्धओ महु-यरो व्व दोलायमाणमणपसरो । सिस्सो पुच्छइ सट्ठाण - जुत्तिगरुयत्तणे तो किं तत्तमेत्थ गुरुणा, पयंपियं हंत उभयसिक्ख त्ति । गहणाऽऽसेवणरूवा, अण्णोण्णसवेक्खयाए जओ आसेवणाए सिक्खा, न गहणसिक्खं विणा भवइ सम्मं । सहला न गहणसिक्खा वि, इह विणाऽऽसेवणासिक्खं संमत्तं पि जओ इह, सुयाऽऽणुसारेण जा पवित्ती उ । सुत्तऽत्थगहणपुव्वा, किरिया तेणेह सिवजणणी किंच ।। १४२९ ।। ॥ १४३० ॥ ॥ १४३१ ॥ ।। १४३२ ॥ ॥ १४३३ ॥ ॥ १४३४ ॥ ४३ ।। १४३५ ॥ ॥ १४३६ ॥ ।। १४३७ ॥ ।। १४३८ ॥ ॥। १४३९ ॥ ॥। १४४० ॥ ॥ १४४१ ॥ ॥। १४४२ ॥ ॥। १४४३ ॥ ॥। १४४४ ॥ ॥। १४४५ ॥ ॥ १४४६ ॥ ॥। १४४७ ॥ ।। १४४८ ।। ॥ १४४९ ॥ ।। १४५० ॥ ॥ १४५१ ॥ ॥। १४५२ ॥ ।। १४५३ ॥ ॥ १४५४ ॥ सुयनाणम्मि वि जीवो, वट्टन्तो सो न पाउणइ मोक्खं। जो तवसंजममइए, जोए न चएइ वोढुं जे "हयं नाणं कियाहीणं, हया अण्णाणओ किया। पासंतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो य अंधओ" " संजोगसिद्धीए फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ। अंधो य पंगू य वणे समेच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा " ।। १४५५ ॥ नाणं नयणसमाणं, चरणं चरणप्पवित्तिपडिरूवं । दोण्हं पि समाजोगे, सिवपुरगमणं जिणा बिति सिक्खादुगोउवएसो, जइ ता मुणिणो वि वण्णिओ एवं। सविसेसं समणोवास- एण ता तत्थ जइव्वं एत्तो च्चिय वणिज्जइ, ते च्चिय धण्णा जयम्मि सप्पुरिसा । जे निच्चमऽप्पमत्ता, नाणी य चरित्तजुत्ता य परमत्थम्मि सुदिट्ठे, अविनट्ठेसु तवसंजमगुणेसु । लब्भइ गई विसिट्ठा, कम्मसमूहे विणट्ठम्मि ॥ १४५६ ॥ ।। १४५७ ।। 1 लक्खित्ता दक्खो लक्ख - णिज्जभावे उ गहणसिक्खाए । लक्खाणुरूवमह अणु - सरेज्ज आसेवणासिक्खं जइ ताव गहणसिक्खा, एक्क च्चिय फलवई हवेज्ज इहं । ता नहि सुयनिही सो वि हु, महुरामंगू तहा हुंतो तहाहि १. भंतो = भ्रान्तः, ।। १४५८ ।। ।। १४५९ ।। ॥ १४६० ॥ ॥ १४६१ ॥
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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