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________________ आ पावजीव! पुव्वब्भवम्मि, एवंविहं कयं कम्मं । किंपि तए तेणेमं, दुव्विसहं वसणमाऽऽवडियं ॥ ६२६५॥ इय संवेगोवगतो, सरिउं चिरभवसुचिण्णसामण्णं । सुहझाणहणियकम्मो, सो केवललच्छिमऽणुपत्तो ॥ ६२६६॥ महिओ देवनरेहि य, रुद्दो पुण तेहिं चेव सव्वत्थ । पावो त्ति खिसिओ बहु, तह अब्भक्खाणदाइ त्ति ॥ ६२६७॥ इय सोऊणं तुममऽवि, अब्भक्खाणाउ विरम भो खमग ! जेणीहियगुणसाहण-हेउसमाहि लहुं लहसि ॥ ६२६८॥ तेरसमपावठाणग-मुवइ8 लेसओ इमं ताव । अरइरइनामधेयं, एत्तो दंसेमि चोद्दसमं ॥ ६२६९॥ अरइरईहिं दोहिं वि, एक्कं चिय बिति पावठाणं जं। विसओवयारवसओ, अरई वि रई रई वरई । ६२७०॥ जह निप्पम्हदिसाए, पावारे पाउयम्मि जा अरई । स च्चिय पम्हदिसाए, तप्पाउरणे रई होइ ॥ ६२७१ ॥ तह पम्हिल्लदिसाए, पावारे पाउयम्मि जा य रई। स च्चिय इयरदिसाए, तप्पाउरणे भवे अरई ॥ ६२७२॥ जह य असंपत्तीए, पत्थियवत्थुस्स होइ जा अरई। सच्चिय रइत्तणेणं, तस्संपत्तीए परिणमइ. ॥६२७३॥ तह जा संपत्तीए, पत्थुयवत्थुस्स होइ एत्थ रती। अरइत्तणेण स च्चिय, तस्स विवत्तीए परिणमइ ॥६२७४ ॥ अहवा बज्झनिमित्तं, विणा वि किर अरतिमोहकम्मुदया। देहे च्चिय जा जायइ, अणागयाऽणिट्ठसूयणिया ॥६२७५ ।। सा अरई तव्वसओ, अलसो विहलंघलो विगयसण्णो। इहपरलोयपओयण-पसाहणेसुंपमायतो ॥६२७६ ॥ उच्छाहिओ वि उच्छहइ, नेय किच्चम्मि कम्मि वि कयाइ। छगलगलत्थणसरिसंस, तारिसो जियइ जियलोए ॥६२७७ ॥ तह रइपसत्तचित्तो, कहिं वि तत्तो नियत्तिउमऽसत्तो। चिक्खल्लखुत्तजरगोण-उव्व रतिमोहकम्मवसा ॥६२७८॥ कज्जमिहलोइयं पि हु, न कुणइ पारत्तियं पुण कहं व। अच्चंतपयत्तपउत्त-चित्तनिव्वत्तणिज्जं जं ॥६२७९ ॥ एवं अरइरईऊ, भवभावनिबंधणं वियाणित्ता । मा तासिं अवगासं, खणं पि दाहिसि तुमं अहवा ॥६२८०॥ अरई पि कुणसु अस्सं-जमम्मि संजमगुणेसु य रई पि। एवं च पकुव्वंतो, लहिहिसि आराहणं पि धुवं ॥ ६२८१॥ किं बहुणा भणिएणं, अरइरइं भवनिबंधणं धुणिउं । काउमऽधम्मे अरई, धम्माऽऽरामे रति कुणसु ॥६२८२॥ समभावपरिणईए, इट्ठाऽणिट्ठविसएसु जइ तुज्झ । धीर! न रई न अरई, ता तुममाऽऽराहणं लहसि ॥ ६२८३॥ धम्माऽहम्मे अरई-रईओ, पुरिसं करंति जणसोच्वं । खुड्डगकुमारमुणिमिव, संजमभरधरणपरितंतं ॥ ६२८४ ॥ सम्मं असंजमे गंज-मे य अरईरईहिं पुण होज्जा । सो च्चिय पच्चागयचेयणो य जह तह जणे पुज्जो ॥६२८५॥ तहाहिसाकेयम्मि पुरवरे, पुंडरीओ नाम भूवई तस्स । कंडरीओ लहुभाया, जसभद्दा नाम से भज्जा ॥६२८६॥ अच्चतमणहरंगी, चंकम्मंती घरंऽगणे सा य। दिट्ठा पुंडरीएणं, अज्झुववण्णेण अह तेणं ॥ ६२८७॥ दुई विसज्जिया लज्जि-रीए तीए य सा पडिनिसिद्धा। अच्वंतं निब्बंधे य, राइणो तीए पडिभणियं ॥ ६२८८॥ किं न लहभाइणो विह, तं लज्जसि जेण उल्लवसि एवं । पच्छण्णो कंडरीओ, तयणु विणासाविओ रण्णा ॥६२८९॥ अब्भत्थिया पुणो वि हु, ताहे सा सीलखंडणभएण। नियगाऽऽभरणाणि लहुं, गहाय गेहाओ नीहरिया ॥ ६२९० ॥ सत्थेण समं एगागिणी वि, पडिवण्णजणगभावस्स। थेरवणियस्स निस्साए नयरिं सावत्थिमऽणुपत्ता ॥६२९१ ॥ जियसेणसरिसिस्सिणि-कित्तिमईमयहरीसमीवे य। वंदणवडियाए गया, कहिओ सव्वो य वुत्तंतो ॥६२९२ ॥ संबुद्धा पव्वइया, हुतो वि न साहिओ तीए गब्भो। मयहरियाए मज्झं, मा पव्वज्जं न दाहि त्ति ॥ ६२९३ ॥ कालक्कमेण वुर्खि, गयम्मि गब्भम्मि मयहरीए सा। पुट्ठा एगंतम्मि कारणमऽवि तीए परिकहियं ॥६२९४॥ पच्छा पच्छण्ण च्चिय, ता धरिया जा सुयं पसूया सा। सड्ढकुलम्मि संवडिओ य सो जाव पव्वइओ ॥ ६२९५ ॥ सूरिस्स समीवम्मि, कयं च से नाम खुड्डगकुमारो । सिक्खविओ य समग्गं, जईण जोग्गं समायारं ॥६२९६॥ अह जोव्वणमऽणुपत्तो, संजममऽणुपालिउं अचाइंतो। पडिभग्गो जणणि सो, पुच्छइ उण्णिक्खमणहेडं ॥६२९७॥ पडिसिद्धो जणणीए, बहुप्पयारेहिं तहवि नो ठाइ । पच्छा तीए भणिओ, पुत्तय ! मज्झोवरोहेण ॥६२९८॥ पडिवालसु बारस वच्छराई, एवं ति तेण पडिवण्णं । तेसु य अइक्वंतेसु, पट्ठिओ तीए पुण भणिओ ॥ ६२९९ ॥ मह गुरुणि आपुच्छसु, आपुट्ठाए य तीए वि य धरिओ। तेत्तियमेत्तं कालं, आयरिएणाऽवि एमेव ॥ ६३००॥ एवं उज्झाएण वि, अडयालीसंगयाणि वरिसाणि । तह विहु अठायमाणो, उवेहिओ णवरि जणणीए ॥६३०१॥ ૧૦૮
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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