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________________ सयलाऽसमंजसकरो, रागो च्चिय अस्थि जइ जियाणेक्को । ता पज्जत्तं संसार-हेउजालेण अवरेण ॥ ६०८६ ॥ रागाऽऽईहि य वत्थु, इओ तओ साहिऊण य किलेसा । जह जह तमऽणुभवेइ, तह तह परिवड्डइ रागो ॥६०८७॥ जइ बिंदुहि भरिज्जइ, उदही तिप्पेज्ज विधणेहिं सिही। तो रागतिसापरिगय-पुरिसो वि लभेज्ज इह तित्ति ॥६०८८॥ न य पुण केणाऽवि इमं, दिटुं व सुयं व एत्थ लोगम्मि। ता तव्वजए जत्तो, जुत्तो काउंसइ विवेगे ॥६०८९ ॥ जं जं जीवाण जयम्मि, जायए सुहमुयारमऽणुबंधि । तं तं दुज्जयरागाऽरि-विजयविफुरियमक्खंडं ॥६०९०॥ एयस्स पुरो रेहइ, न य दिव्वं माणुसं व वरसोक्खं । लेसेण वि उत्तमरयण-रासिणो कायमणिउ व्व ॥६०९१॥ इह पेज्जपावठाणग-दोसे अरिहण्णयस्स किर भज्जा। नायं तप्पडिवक्खे, तद्दियरो चिय अरिहमित्तो ॥६०९२॥ तहाहिसिरिखिइपइट्ठियपुरे, अरहण्णयअरिहमित्तनामाणो । अवरोप्परदढपणया, निवसंति भाउणो दोण्णि ॥६०९३ ॥ जेट्ठस्स गेहिणीए, तिव्वऽणुरागाए एगसमयम्मि। अब्भत्थिओ कणिट्ठो, पडिसिद्धा तेण सा बहुसो ॥६०९४ ॥ तह वि हु उवसग्गंती, भणिया कि नियसि भाउगं न हु मे । तो तीए भत्तारो, विणासिओ अणत्थसीलाए ॥६०९५॥ पच्छा भणिओ एवं पि, कीस नो इच्छसि त्ति तो तेणं । तत्तो भाइविणासं, विणिच्छिउं गिहविरत्तेण ॥६०९६॥ गहिया जिणपव्वज्जा, साहूहिं समं च विहरिओ बहिया । इयरी अट्टवसट्टा, सुणिगा मरिऊण उप्पण्णा ॥६०९७॥ गामम्मि जत्थ सुणिगा, सा वट्टइ तत्थ चेव विहरंतो । समणगणेण समेओ, समागओ अरिहमित्तो वि ॥६०९८॥ तो पुव्वपेमवसगा, सा सुणिगा तस्स न मुयइ समीवं । उवसग्गो त्ति निसाए, ताहे नट्ठो अरिहमित्तो ॥६०९९ ॥ इयरी वितविओगेण, मरिय अडवीए मक्कडी जाया। सो वि महप्पा कहमऽवि, तमेव अडवि समऽणुपत्तो ॥६१०० ॥ दिट्ठो य मक्कडीए, लग्गा कंठम्मि पुव्वपेमेण । मोयाविओ य हुमऽवि, सेसमुणीहिं पलाणो सो ॥६१०१॥ सा पुण तविरहम्मि, मरिऊणं जक्खिणी समुप्पण्णा । तच्छिड्डाई विमग्गइ, विहरंतं तं च नीरागं ॥६१०२॥ हसिऊण तरुणसमणा, भणंति धण्णोऽसि अरिहमित्त ! तुमं । जंच पिओ सुणियाणं, वयंस ! गिरिमक्कडीणं च ॥६१०३ ।। एवं कयपरिहासो वि, निक्कसाओ स अवरसमयम्मि। जलपवहमऽइक्कमिडं, पसारिउंदीहरं जंघ ॥६१०४ ॥ जा गंतुं आरद्धो, ता गतिभेएण लद्धछिडाए । पुव्वपरुट्ठाए जक्खिणीए से ऊरुओ छिण्णो ॥ ६१०५ ॥ हा दुट्ठ दुटु मा आउ-कायजीवा विराहिया होज्जा। एवं परिभातो, अधिई जा कुणइ सो झत्ति ॥६१०६॥ ता सम्मदिट्ठिगाए उ, देवयाए पराजिणित्ता तं । सपएसो से ऊरू, संघडिय पुणण्णवो विहिओ ॥ ६१०७॥ एवं पेज्जविवक्खे, वर्सेतो सो हु सुगतिमऽणुपत्तो । इयरी य पेज्जनडिया, विडंबणाभायणं जाया ॥६१०८॥ इय भो देवाणुप्पिय ! तुमं पि जिणवयणविमलसलिलेण। निव्वावसु पेज्जऽग्गिं, समीहियऽत्थस्स सिद्धिकए ॥६१०९ ।। दसमं पावट्ठाणग-मेवं संखेवओ पवक्खायं । दोसाऽभिहाणमेत्तो, एक्कारसमं परिकहेमि ॥६११०॥ अच्चंतकोहमाणु-ब्भवो इहं असुहआयपरिणामो। दोसो भण्णइ जम्हा, दूसिज्जइ तेण सपरजणो ॥६१११ ॥ दोसो अणत्थभवणं, दोसो भयकलहदुक्खभंडारो। दोसो कज्जविणासी, दोसो असमंजसाण निही ॥६११२॥ दोसो अनिव्वइकरो, दोसो पियमित्तदोहकारी य। सपरोभयतावकरो, दोसो दोसो गुणविणासो ॥ ६११३॥ दोसेण चेव कलिओ परगुणदोसे विकत्थइ पुरिसो। दोसकलुसियमणो च्चिय, आवहइ ऊणहिययत्तं ॥६११४ ॥ ऊणहिययस्स उ परो, जं जं चे?इ उ अप्पगयमेव । अप्पविसयं खुतं तं, मण्णइ मूढो किलिस्सइ य ॥ ६११५ ॥ धम्मोवएसरूवं, रइठाणं पि हु परेण सीसंतं । महु संभियपायसमिव, दूसइ पित्तऽद्दिओ व जडो ॥ ६११६॥ ता जइ रइठाणं पि हु, अरइपयं होइ जस्स दोसेण । ता दोसस्स न जुत्तो, दाउमऽणज्जस्स अवयासो ॥६११७॥ जे जेत्तिया य पुदि, भणिया दोसा हयाऽऽसदोसस्स । ते तेत्तिय च्चिय गुणा, भवंति सुविसुद्धपसमस्स ॥ ६११८॥ दोसदवाऽनलजोगा, दहूं दड़े समंऽबुवरिसेण । चित्तसमाहाणवणं, नियमेण पुणण्णवीहोइ ॥६११९॥ इह दोसपावठाणा, चरणमऽसुद्धं अकासि धम्मरुई । पच्छाऽऽगयसंवेगो, सोच्चिय सुद्धं तयमऽकासि ॥६१२०॥ तथाहि१.विधणेहि = वा इंधणेहि, २. संभिव - समभृत - मिश्रित, १७३
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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