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________________ तथाहिभत्तेण व पाणेण व, उवगरणेणं च कीइकम्मेणं । आकंपेऊण गणि, करेइ आलोयणं कोई आलोइयं असेसं, होही काही अणुग्गहमिमो त्ति । इय आलोइंतस्स उ, पढमो आलोयणादोसो नाऊण विसं पुरिसो, जह को वि पिवेज्ज जीवियऽत्थी उ। मण्णंतो हियमऽहियं, सल्लविसोही तहेसा वि कि एस उग्गदंडो, मिउदंडो व त्ति एवमऽणुमाणे । अहव अबलो त्ति थेवं, पच्छित्तं मज्झ देज्जाहि धण्णा ते भगवंतो, सुट्ठ निसटुं च जे कुणंति तवं । वयइ निहीणो खु अहं, जं न समत्थो तवं काउं जाणह य मज्झ थामं, गहणीदोबल्लया अणाऽऽरोग्गं । तुम्ह पभावेण इम, सोहिं बहु नित्थरिस्सामि अणुमाणेऊण गुरुं, एवं आलोयणं तओ पच्छा । कुणइ ससल्लो ता सो, बीयो आलोयणादोसो गुणकारओ त्ति भुंजइ, जहा सुहऽत्थी अपत्थमाऽऽहारं। पच्छा विवागकडुयं, सल्लविसोही तहेसा वि दिट्ठा उ जे परेणं, दोसा वियडेइ ते च्चिय न अण्णे । सोहिभया जाणंतु व, एसो एयाऽवराहो त्ति मोहेण मोहियमई, अद्दिटुं सव्वहा निगृहेतो। आलोएइ जं तं, तईओ आलोयणादोसो जह वालुयाए अवडो, पूरइ उक्कीरमाणओ चेव । तह कम्माऽऽयाणकरी, सल्लविसोही इमा होइ बायरवडवराहे, जो आलोएइ सुहमए नेय । अहवा सहमे वियडइ, वरमण्णंतो उ एवं त जो सहमे आलोयइ, सो किह नाऽऽलोए बायरे दोसे। अहवा जो बायरए, वियडइ सो किं न सुहमे उ बायरमाऽऽलोएइ, वयभंगो जत्थ जत्थ से जाओ। पच्छाएइ य सुहुमं, चउत्थओ वियडणादोसो जह कंसियभिंगारो, अंतो मइलो वि सुद्धओ बाहिं। अंतो ससल्लदोसा, सल्लविसोही तहेसावि केवलइ च्चिय सुहमे, आलोयइ थूलए उ गोवेइ । भयमयमायासहिओ, भवइ य सो पंचमो दोसो रसपीयलं व कडयं, जह वा जुत्तीसुवण्णकडयं च । जह व जउपूरकडयं, सल्लविसोही तहेसा वि जइ मूलगुणे उत्तर-गुणे य कस्सइ विराहणा होज्जा । पढमे बीए तइए, चउत्थए पंचमे च वए को तस्स दिज्जइ तवो, इय पच्छण्णं पपुच्छिउं कुणइ । सयमऽवि पायच्छित्तं, छट्ठो आलोयणादोसो अहवा आलोइंतो, छण्णं आलोयए जहा नवरं। निसुणेइ अप्पण च्चिय, न परो छट्ठो भवइ एवं मयतण्हाओ उदयं, इच्छइ कूरं व चंदपरिवेसे। जो सो इच्छइ सोहिं, अकहेंता अप्पणो दोसे पक्खिय-चाउम्मासिय-संवच्छरिएसु सोहिकालेसु । सद्दाऽऽउले कहेइ, दोसे सो होइ सत्तमओ अरहट्टघडीसरिसी, अहवा बुंदंछिओवमा होइ । भिण्णघडसरिच्छा वा, सल्लविसोही इमा तस्स एक्कस्साऽऽलोइत्ता, जो आलोए पुणो वि अण्णस्स । ते चेव उ अवराहे, तं होइ बहुजणं नाम आलोइऊण गुरुणो, पायच्छित्तं पडिच्छिउं तत्तो । तमऽसद्दहओ पुच्छइ, अण्णऽण्णं अट्ठमो दोसो पउणो वणो ससल्लो, जह संतावेइ आउरं पच्छा । तिव्वाहि वेयणाहिं, सल्लविसोही तहेसा वि जो सुयपरियाएहिं, अव्वत्तो तस्स निययदुच्चरियं । आलोयंतस्स फुडं, णवमो आलोयणादोसो कूडहिरण्णं जह निच्छएण, दुज्जणकया जहा मेत्ती। पच्छा होइ अपत्थं, सल्लविसोही तहेव इमा ते चेव जोऽवराहे, सेवइ सूरी स होइ तस्सेवी। तस्स समीवे एसो, मम समदोसो त्ति नो दोही अइगरुयं मह दंडं ति, मोहओ संकिलिट्ठभावस्स । आलोयंतस्स भवे, दसमो आलोयणादोसो लोहियदुसियवत्थं, धोवइ जह कोवि लोहिएणेव । सोहीकएण मूढो, सल्लविसोही तहेव इमा पवयणनिण्हवयाणं, जह दुक्करयं तवं करेंताणं । दूरं खु सिद्धिगमणं, सल्लविसोही तहेसा वि इय दस वि इमे दोसे, सो भयलज्जाओ माणमायाओ। निज्जूहित्ता सुद्धं करेइ आलोयणं खवगो नट्टचलवलियगिहिभास-मूयढड्ढरसरं च मोत्तूण । आलोएइ स धण्णो, सम्मं गुरुणो अभिमुहत्थो इय जेणं दायव्वा, सविवक्खो सो समासओ भणिओ। जे य अदाणे दोसा, तीए ते संपयं वोच्छं लज्जाए गारवेण य, बहुस्सुयमएण वा वि दुच्चरियं । जे न कहेंति गुरूणं, न हु ते आराहगा होति १. निसटुं - प्रचुरम्, २. कुंदंछिओवमा - वृन्देक्षुतोपमा, यथा वृन्दे क्षुतं न गण्यते तथा, ॥ ४९१३ ॥ ॥ ४९१४॥ ॥ ४९१५॥ ॥ ४९१६॥ ॥ ४९१७॥ ॥ ४९१८॥ ॥ ४९१९॥ ॥ ४९२०॥ ॥ ४९२१ ॥ ॥ ४९२२॥ ।। ४९२३॥ ॥ ४९२४॥ ॥ ४९२५॥ ।। ४९२६ ॥ ॥ ४९२७॥ ॥ ४९२८॥ ॥ ४९२९॥ ॥ ४९३०॥ ॥ ४९३१ ॥ ॥ ४९३२॥ ॥ ४९३३॥ ॥ ४९३४॥ ॥ ४९३५ ॥ ॥ ४९३६ ॥ ।। ४९३७ ॥ ॥ ४९३८॥ ॥ ४९३९ ।। ॥ ४९४०॥ ॥ ४९४१॥ ॥ ४९४२॥ ॥ ४९४३॥ ॥ ४९४४॥ ॥ ४९४५ ॥ ॥ ४९४६॥ ॥४९४७॥ ॥ ४९४८॥ ૧૪૧
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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