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________________ विहरतो य महप्पा, पाडलिपुत्तम्मि वरपुरम्मि गतो । भिक्खऽट्ठा य पविट्ठो, समुचियसमयम्मि उवउत्तो अह तत्थेव पुरम्मि, वत्थव्वेणं स सयणबोहऽत्थं । अज्जसुहत्थी वसुभूइ-सेट्ठिणा नियगिहे नीओ पारद्धा धम्मकहा, तेणाऽवि य तव्विबोहणनिमित्तं । एत्थंतरम्मि पत्तो, महागिरी तत्थ भिक्खऽट्ठा दट्टं सुहत्थिणा भाव-सारमऽब्भुट्ठिओ य स महप्पा । तो विम्हइयमणेणं, भणियं वसुभूइणा एवं भयवं ! किं तुम्हाण वि, अन्ने विज्जंति सूरिणो गरुया । जं एवमिमस्स कया, अब्भुट्ठाणाऽऽइपडिवत्ती भणियं सुहत्थिणा भद्द ! एस भयवं सुदुक्कराऽऽरंभे। अईए वि हु जिणकप्पे, तप्परिकम्मं इय करेइ उवसग्गवग्गसंसग्ग-निच्चलो उज्झियऽण्णभोई य। निच्चोलंबियहत्थो, धम्मज्झाणेक्कपडिबद्धो ससरीरे विहु मुच्छा-विवज्जियो नियगणे वि अममत्तो । सुण्णहरसुसाणाऽऽइसु, विचित्तठाणोवठाई य एवमाऽऽइणिकप्प-विसयपरिकम्मकारिणो तस्स । गुणसंथवं करित्ता, सूरी धम्मे य ठविऊणं वसुभूइसयणवग्गं, विणिग्गओ तग्गिहाओ अह सेट्ठी । भणइ नियपरियणं जइ, कहंपि एवंविहो साहू आगच्छेज्जा भिक्खट्ठ मेत्थ उज्झतगाणि ता तुब्भे । काऊणाऽसणपाणाऽऽई, तस्स देज्जह पयत्तेणं एवं दिणं हि बहु- फलं भवे इय परूविए संते । पत्तो महागिरी अण्ण-वासरे भिक्खणट्टाए वसुभूइदिण्णसिक्खाऽणु-रूवओ परियणं च दट्टणं । दाणऽट्ठमुवट्ठियमुज्झि - यऽण्णपाणप्पयारेणदव्वाऽऽइसु उवउत्तो, महागिरी मंदरो व्व गुरुसत्तौ । जाणइ कवडविरयणं, अगहियभिक्खो नियत्तइ य कहइ य सुहत्थिोऽसणा कया सो भणेइ नणु केण । तुमए मइ इंतम्मि, अब्भुट्ठाणं कुणंतेण अहते दो विसमं चिय, वइदिसनयरिं गया विहारेण । जियपडिमं वंदित्ता, तत्थऽज्जमहागिरिमुणिदो तत्तो विणिक्खमित्ता, गयग्गपयवंदणट्टया चलितो । नयरम्मि एलगच्छे, तमेलगच्छं च जह जायं तह भण्ण किर पुव्वं, नामेण इमं दसण्णपुरमाऽऽसि । तत्थ य सुसाविया मिच्छ-दिट्टिणो संतिया गिहिणी जिणधम्मनिच्चलमणा, पच्चक्खाणं पओससमयम्मि । कुणमाणी हीलाए, भणिया सा भत्तुणा एवं रयणी मुद्धि ! किं कोई, भोयणं कुणइ जेण संवरणं । एवं पइदियहं पि हु, निरऽत्थयं तं समायरसि जइ पुण अभुज्जमाणऽत्थ-पच्चक्खाणे वि होज्ज कोई गुणो। ता कहसु जेण अहमऽवि, पच्चक्खाणं करेमि त्ति ती पयंपियं अत्थि, चेव विनिवित्तिसंभवो सुगुणो । नवरं पच्चक्खाणे, घेत्तुं भग्गे महादोसो आ मुद्धि ! निसिम्मितए, दिट्ठो हं किं कयाइ जेमंतो। इय हीलाए जंपिय, पच्चक्खाणं कयं तेण अह तद्देगयाए, विचितियं देवयाए एक्काए । हीलाकरस्स एयस्स, अज्ज फेडेमि दुव्विणयं तत्तो भगिणीरूवेण, दिव्वमोयग पंहेणयं घेत्तुं । देवी समागया से, पणामियं तीए तं भोज्जं सो भुंजिउमाऽऽरद्धो, पडिसिद्धो साविगाए तो भणइ । हो ! होउ कयं तुह मुद्धि !, कूडनियमेहिं मह इण्हि आ पाव ! जिणमयं पि हु, उवहससि विणट्ठसुहसमायार!। इइ जंपिरीए दढजाय - कोववसपाडलऽच्छीए तह देवयाए पहओ, मुहम्मि सो रयणिभोयणाऽऽसत्तो । जह अच्छिगोलगा दो वि, निवडिया तस्स भूवट्ठे अहह ! मह अवजसो एस, होहिइ इय वियक्कजायभया । काउस्सग्गेण ठिया, जणपुरओ साविगा ताहे अह अड्ढरत्तसमए, समागया देवया इमं भणइ । किं सुमरियम्हि तीए, पयंपियं देवि ! अवणेसु अवजसमिमं ति तक्खण-हणिज्जमाणेलगस्स अच्छीणि । अह घेत्तुं देवीए, तस्सऽच्छिजुयम्मि ठवियाणि जाए पभायसमए, सविम्हयं सयणनयरलोएण । भणियं चोज्जमिमं भो !, जाओ तं एलगऽच्छो त्ति एवं च एलगऽच्छो त्ति, सो पसिद्धिं गतो हु सव्वत्थ । तस्संबंधेण पुरं पि, एलगऽच्छं तओ जायं अह पुव्वऽभिहाणेणं, दसण्णकूडो त्ति विस्सुओ वि जए। स गयऽग्गपओ सेलो, जह जाओ तह परिकहेमि किर पुर्व्वि तत्थ पुरे, दसण्णभद्दो महानिवो आसि । तस्स य पंच सयाई, सुरूवरमणीण ओरोहो नियजोव्वणेण रूवेण, रायलच्छीए पवरसेणाए । पडिबद्धो सो सेसे, अवमण्णइ मेइणीवइणो अह गम्मि अवसरे, दसण्णकूडे गिरिम्मि जगनाहो । सिरिवद्धमाणसामी, समोसढो आगया तियसा १. पहेणयं = भोजनं प्राभृतं वा, ૧૧૪ ॥ ३९३१ ॥ ॥ ३९३२ ॥ ॥ ३९३३ ॥ ॥ ३९३४ ॥ ।। ३९३५ ।। ॥ ३९३६ ॥ ॥ ३९३७ ॥ ।। ३९३८ ।। ॥ ३९३९ ॥ ॥। ३९४० ॥ ॥। ३९४१ ॥ ॥। ३९४२ ॥ ॥। ३९४३ ॥ ॥ ३९४४ ॥ ।। ३९४५ ॥ ॥। ३९४६ ॥ ॥। ३९४७ ॥ ।। ३९४८ ।। ॥ ३९४९ ॥ ।। ३९५० ।। ।। ३९५१ ।। ।। ३९५२ ॥ ।। ३९५३ ॥ ।। ३९५४ ॥ ।। ३९५५ ।। ॥ ३९५६ ॥ ॥ ३९५७ ।। ।। ३९५८ ।। ।। ३९५९ ।। ॥ ३९६० ॥ ॥ ३९६१ ॥ ॥ ३९६२ ॥ ॥ ३९६३ ॥ ॥ ३९६४ ॥ ।। ३९६५ ॥ ॥ ३९६६ ॥ ॥ ३९६७ ॥
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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