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द्वात्रिंशद्विधा वन्दनदोषाः
कुणइ करे जाणुं वा एगयरं ठवइ करजुयलमज्झे ४। उच्छंगे कड़ करे ५ भयं तु निज्जूहणाईयं ॥१६१॥ भयइ व भयिस्सइत्ति य इअ वंदइ होरयं निवेसंतो। एमेव य मित्तीए गारव सिक्खाविणीओऽहं ॥१६२॥ नाणाइतिगं मोत्तं कारणमिहलोयसाहयं होइ । पूयागारवहेऊं नाणग्गहणेवि एमेव ॥१६३॥ हाउं परस्स दिढेि वंदंते तेणियं हवइ एयं । तेणो विव अप्पाणं गूहइ ओभावणा मा मे ॥१६४॥ आहारस्स उ काले नीहारस्सावि होइ पडिणीयं । रोसेण धमधमंतो जं वंदइ रुटमेयं तु ॥१६५॥ नवि कुप्पसि न पसीयसि कट्टसिवो चेव तज्जियं एयं । सीसंगुलिमाईहि य तज्जेइ गुरुं पणिवयंतो ॥१६६॥ वीसंभट्ठाणमिणं सब्भावजढे सढं भवइ एयं । कवडंति कइयवंति य सढयावि य हुंति एगट्ठा ॥१६७॥ गणिवायगजिज्जत्ति हीलिउं किं तमे पणमिऊण? । दरवंदियंमिवि कहं करेइ पलिउंचियं एयं ॥१६८॥ अंतरिओ तमसे वा न वंदई वंदई उ दीसंतो। एयं दिट्ठमदिटुं सिंगं पुण मुद्धपासेहिं ॥१६९॥ करमिव मन्नइ दितो वंदणयं आरहंतियकरोत्ति । लोइयकराउ मुक्का न मुच्चिमो वंदणकरस्स ॥१७०॥ आलिद्धमणालिद्धं रयहरणसिरेहिं होइ चउभंगो। वयणक्खरेहिं ऊणं जहन्नकालेवि सेसेहि ॥१७१॥ दाऊण वंदणं मत्थएण वंदामि चूलिया एसा। मूयव्व सहरहिओ जं वंदइ मूयगं तं तुं ॥१७२॥ ढङ्गरसरेण जो पुण सुत्तं घोसेइ ढड्डुरं तमिह । चुडलि व गिहिऊणं रयहरणं होइ चुडलिं तु ॥१७३॥