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________________ चतुर्विधा कथा __ अन्ये त्वत्राचलमूलदेवी देवदत्तां प्रतीत्येक्षुयाचनायां प्रभूतासंस्कृतस्तोकसंस्कृतप्रदानद्वारेणोदाहरणमभिदधति, दृष्टमधिकृत्य कामकथा यथा नारदेन रुक्मिणीरूपं दृष्ट्वा वासुदेवे कृता, श्रुतं त्वधिकृत्य यथा पद्मनाभेन राज्ञा नारदाद्रौपदीरूपमाकार्ण्य पूर्वसंस्तुतदेवेभ्यः कथिता, अनुभूतं चाधिकृत्य कामकथा यथा - तरङ्गवत्या निजानुभवकथने, संस्तवश्च-कामकथापरिचयः 'कारणानी'तिकामसूत्रपाठात्, अन्ये त्वभिदधति - "सइदंसणाउ पेम्मं पेमाउ ई ईय विस्संभो । विस्संभाओ पणओ पञ्चविहं वड्डए पेम्मं ॥१॥" ॥१९२॥ (छाया- सकृद्दर्शनात् प्रेम प्रेम्णो रतिः रतेः विश्रम्भः । विश्रम्भात् प्रणयः पञ्चविधं वर्धते प्रेम ॥१॥ उक्ता कामकथा, धर्मकथामाह - धम्मकहा बोद्धव्वा चउव्विहा धीरपुरिसपन्नत्ता । अक्खेवणि विक्खेवणि संवेगे चेव निव्वेए ॥१९३॥ आयारे ववहारे पन्नत्ती चेव दिट्ठीवाए य। एसा चउव्विहा खलु कहा उ अक्खेवणी होइ ॥१९४॥ विज्जा चरणं च तवो पुरिसक्कारो य समिइगुत्तीओ। उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ अक्खेवणीइ रसो ॥१९५॥ कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवच्चासा । मिच्छासम्मावाए एमेव हवंति दो भेया ॥१९६॥ जा ससमयवज्जा खलु होइ कहा लोगवेयसंजत्ता। परसमयाणं च कहा एसा विक्खेवणी नाम ॥१९७॥ जा ससमएण पुचि अक्खाया तं छुभेज्ज परसमए । परसासणवक्खेवा परस्स समयं परिकहेइ ॥१९८॥ आयपरसरीरगया इहलोए चेव तहय परलोए । एसा चउव्विहा खलु कहा उ संवेयणी होइ ॥१९९॥ वीरियविउव्वणिड्डी नाणचरणदसणाण तह इड्डी । उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ संवेयणीइ रसो ॥२००॥
SR No.022275
Book TitleGurugun Shattrinshtshatrinshika Kulak Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size29 MB
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