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________________ श्रावक धर्म विधि प्रकरण श्रावकधर्मविधिप्रकरण में श्रावक धर्म का विवेचन किया है। जहाँ एक ओर श्रावक धर्मपंचाशक मात्र ५० गाथाओं की संक्षिप्त कृति हैं, वहीं दूसरी ओर श्रावकप्रज्ञप्ति लगभग ४०० गाथाओं में रचित एक विस्तृत ग्रन्थ है। इसके विपरीत श्रावकधर्मविधि प्रकरण १२० गाथाओं में रचित एक मध्यम आकार की कृति है । इस कृति का वैशिष्ट्य यही है कि इसमें जहाँ श्रावक के व्रतों की चर्चा के साथ-साथ सम्यक्त्व की चर्चा पर्याप्त विस्तार से की गई है। जहाँ तक मेरी जानकारी है अभी तक इस ग्रन्थ का कोई भी अनुवाद उपलब्ध नहीं था । प्राकृत भारती अकादमी ने इस ग्रन्थ का हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद करवाकर उसे प्रकाशित करने का एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ और प्राकृत भारती अकादमी ने मिलकर आचार्य हरिभद्र के विभिन्न ग्रन्थों की अनुवाद सहित प्रकाशन की जो योजना बनाई है वह सफल हो और मध्ययुग के इस उदारचेता समदर्शी महर्षि आचार्य हरिभद्र की कृतियों से जन-जन लाभान्वित हो यही एक मात्र अपेक्षा है । अन्त में मैं प्राकृत भारती के निदेशक महोपाध्याय विनयसागरजी के प्रति आभार प्रकट करता हूँ कि उन्होंने प्रस्तुत कृति की भूमिका के लिए न केवल मुझे आग्रह किया अपितु मेरी व्यक्तिगत व्यस्तताओं के कारण दीर्घकाल तक इसकी प्रतीक्षा भी की । प्रस्तुत कृति के अनुवाद में अपेक्षित परिष्कार एवं संशोधन मैंने अपनी अल्प के अनुसार करने का प्रयत्न किया है। फिर भी भूलें रह जाना संभव है, अतः विद्वानों से अनुरोध है कि वे अपने सुझावों से हमें लाभान्वित करें ताकि भविष्य में और भी अपेक्षित परिमार्जन किया जा सके । ६६ डॉ० सागरमल जैन भूतपूर्व निदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी
SR No.022216
Book TitleShravak Dharm Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorVinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages134
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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