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(२४) नित्रा न हरे, अर्थात बीजा सर्वनी दृष्टिनी निजा ते हरेजे. ते सुधर्मा पदनी अर्थ विचारणा पुर्नयरूप अंधकारनो उम्छेद करवामां सूर्यनी कान्तिरूपले. अहिं सूर्यनी कान्तिसदृश एवं व्याख्यान न करवू, कारणके जो तेनीसदृश एम कहीए तो तेना जेवं कार्य उत्पन्न न पाय. ( अहिं विनोक्ति, काव्य रूपक अने काव्य लिंग अलंकारो थायजे.) १० ___ हवे सूर्याजनामना असुरना अधिकारवमे प्रतिमाना शत्रु अने शासनना अर्थने चोरनारा ते कुमतियोनी चारेतरफ नासी पासी बतावी प्रतिमानी स्तुतिकरे. प्राक् पश्चाच्च हितार्थतां हृदि विदन् तेस्तैरूपायैर्यथा, मूर्तीः पूजितवान्मुदा नगवतां सूर्याजनामासुरः। याति प्रच्युतवर्णकर्णकुहरे तप्तत्रपुत्वं नृप, प्रश्नोपांगसमर्थिता इतधियां व्यक्ता तथा पतिः ११
अर्थ-सूर्यान नामना असुरे पोताना हृदयमां पूर्वमां श्रने परिणामे (अंतमां) आत्महित जाणी तेते लक्तिसाधनना उपायोथी श्रीजगवंतनी प्रतिमाने पूजेली. या प्रक्रिया राजप्रश्नीयोपांग सूत्रमा स्पष्टीते आपेली. ते प्रक्रिया ते मुर्ख कुमतियोना निरक्षर कर्णमां तपेला सीसाजेवी लागे. ११
विशेषार्थ-प्राक प्रथम अने पश्चात् पछी अर्थात् उत्तरोत्तर जवनवांतरसंबंधी परिणामे हितार्थता अर्थात् कट्याणनी अजिलाषाने हृदयमां जाणतो, एवो सूर्याजनामनो असुर जे आगख कहेवामां आवशे एवा नक्तिसाधनना प्रकारोश्री श्रीनगवं