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तनी प्रतिमाने पूजतो हवो. ते प्रमाणे राजप्रश्नोपांगमां प्रगटपणे हेतु सहित निर्णय करेली प्रक्रिया, हतबुद्धि अर्थात मूलथी जेमनी बुद्धि छेद पामी एवा लुंपकमतवाला पुरुषोना वर्णरहित एटले निरक्षर एवा कर्णरूप राफडामां (हिं अक्षरशक्तिना प्रतिबंधन व होवाथी तेमां अतिदाह थाय एवो व्यंगार्थ जावो. वली राफडानी उपमाथी ते संस्काररहित एवो व्यंगार्थ निकले ) ते प्रक्रिया तपेला सींसाना रूपने पामेबे, अर्थात् प्रतिमाने प्रतिपादन करनारा अक्षरो दुर्मति लुंपकोना कर्णमां तपेला सींसानी जेम पोतानाज दोपथी दाह उत्पन्न करेबे.. (हिं मम्मटना मतप्रमाणे निदर्शनाअलंकार थाय ने बीजाना मतप्रमाणे संबंधे संबंध रूप अतिशयोक्ति थाय . ) ११ हिं कुमतियो कहेनेके प्रतिमानी पूजा पूर्व ने पश्चात् काले जे हितार्थकबे, ते देवजवनी अपेक्षाथी जळे. तेथी सूर्याजदेवने प्रतिमा पूजनादिकनुं फल मात्र या लोकना अयुदयने माटेज थायवे, तेथी ते मोक्षार्थीने आदरवा योग्य नथी. मात्र देवतानी स्थिति होवाथी देवतार्जनेज श्राश्रय करवायोग्य ते प्रतिमा पूजन या कथनना निराकरणसाथे ते कुमतियो आक्षेप करी कहे.
नात्र प्रेत्य हितार्थितोच्यत इति व्यक्ता जिनाच स्थिति देवानां नतु धर्महेतुरिति ये पूत्कुर्वते पुर्द्धियः । प्राक् पश्चादिव रम्यतां परजवश्रेयोर्थितासंगतां, प्राक् पश्चाच्च हितार्थितां श्रुतमतां पश्यंत्यहो तेन किं १२