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१०८ बोल संग्रह
( ७ ) अभव्यनइं अनाभोगरूप एकज अव्यक्त मिथ्यात्व हुई एहव, व्याख्यान विधिशतकमां लिख्यं छइ ते अयुक्त, जे माटइं गुणस्थानक्रमारोहादिक ग्रंथई अभव्यनइं व्यक्ताव्यक्त २, प्रकारि मिथ्यात्व कहिउं छइं ॥ ७ ॥
(८ ) वली तिहां एहवं लिख्यं छइं, जे एकपुद्गलपरावर्त संसार शेष जेहनइं हुई तेहनइंज व्यक्त मिथ्यात्व कहिइं ते सर्वथा न घटइं, ते माटइं तेहयी अधिक संसारी पणि पाखंडी व्यक्तमिथ्यात्वीज कहिया छइं॥८॥
अनाभोग मिथ्यात्वइं वर्त्तता जीवने मार्गगामी वा उन्मार्गगामी कहिइं, एहवी कल्पना करि छइं ते कोई ग्रंथइ नथी अनइं इम कहतां सघलई ३, राशि कल्पाइं ।। ९ ।।
( १० ) अभव्य अव्यवहारिया कहिया छइं । ते उपदेशपदादिकग्रंथसाथि तथा लोकव्यवहार साथि पणि न मिलइ ।। १० ॥
( ११ ) व्यवहारिया जीव सर्व, आवलिका असंख्येयभागसमयप्रमाण पुद्गलपरावर्त पछी अवश्य मोक्षइं जाइं, एहवं लिख्यं छइं, तिहां कोइ ग्रंथनी साखि नथी। साहम भुवनभानु केवलिचरित्र, योगबिन्दु मुख ग्रंथनी मेलि व्यवहारिया थया पछी अनंता पुद्गलपरावर्त पणि दीसई छई ॥ ११ ॥