SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ बोल संग्रह ( १२ ) सूक्ष्मपृथिव्यादिक ४ तथा निगोद २, ए छ भेद अव्यवहारिया कहि एवं लिख्यं छइं ते न घटइ, जे माटइ – उपमितभवप्रपंचा सनयसारसूत्रवृत्ति, ' भवभावनावृत्ति, श्रावकदिनकृत्यवृत्ति, पुष्पमालावृत्ति, धर्म रत्नप्रकरणवृत्ति, संस्कृतनवतत्त्व सूत्रादिक ग्रंथनी मेलइं प्रकटज बादरनिगोदादिक व्यवहारिया जणाई छई, एक सूक्ष्मनिगोद ज अव्यवहारिया कहिया छइ ।। १२ ।। ( १३ ) ऍ उपमितिभवप्रपंचादिकनां वचन, पन्नवणा साथई विरुद्ध अनाभोगपूर्वक एहवुं लिख्युं छइं, ते पूर्वाचार्यनी आशात नानुं वचन जिनशासननी प्रक्रिया जाणइं ते किम बोलइ || १३|| ( १४ ) अभव्य व्यवहारियाथी तथा अव्यवहारिया थी बाह्य छई, एवं पणि व्याख्यान विधिज्ञतक मां लिख्यं छइं, ते पणि कल्प नामात्रजं ।। १४॥ ( १५ ) अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व अभिग्रहिक सरिखुं आकरु एहवं लिख्यं छइं ते पणि न घटइं जे माटई योगबिन्दु प्रमुख ग्रंथई अनाभिग्रहिक आदि धर्मभूमिका रूप दीस छई ॥ १५ ॥ १. मूल प्रति में इसी प्रकार का नाम है, किन्तु इस प्रकार का ग्रन्थ कौन सा है ? यह ज्ञात नहीं है । यहाँ जो साक्षी ग्रन्थ हैं वे श्वेताम्बरीय हैं । ग्रतः 'समयसार ' की कल्पना नहीं की जा सकती है ।
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy