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शरीरो अने सूक्ष्म निगोद नां शरीरो घणां भेगां थवा छतां पण चर्मं चक्षुथी जोई शकातां नथी. तेवी रीते कर्मो पण रूपी होवा छतां चर्म चक्षु थी जोई शकातां नथी परन्तु केवल ज्ञान द्वाराज जोई शकाय छे.
जीवना असंख्यात आत्म प्रदेशे अनंतां कर्मी लागेल होवा छतां जैन शासन ने पामी सम्यक् दर्शन, सम्यक्ज्ञान अने सम्यक् चारित्र नी आराधना प्रभावना करवा द्वारा आत्मा कर्म थी मुक्त बनी सिद्ध अवस्था पामी शके छे. कर्मों नु समग्र लोकाकाश मां प्रश्रय पणु एटलेज जीवो कर्मों थी आवृत्त
मूलम्
प्रतस्तु कर्माणि समग्र लोका- काशाश्रितानीह निरन्तरारिण तेनैव जीवा हि मवन्ति कर्मा वृता वसूनीव मृदाविलानि ६ । गाथार्थ- समग्र लोकाकाश मां प्रांतरा रहित कर्मो रहेलां होवाथी सुवर्णं माटी थी आवृत होय तेम जीवो प्रावृत छे. विवेचन. सूक्ष्म निगोद, सूक्ष्म पृथ्वी कायादि अने बादर वायु काय थी समग्र जगत ठांसी ठांसी ने डाबड़ी मां भरेल अंजन नी जेम संपूर्ण भरायेल छे. कर्मो पण जगत मां तेवीज रीते प्रांतरा रहित भरायेल छे. अर्थात् समग्र जगत सूक्ष्म निगोद, सूक्ष्म पृथ्वी कायादि, बादर वायु काय अने कर्मो थी ठांसीं ठांसी ने भरेल होवा थी जेम खान मां सोनुं चारे बाजुथी माटी बी विटायेंल