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होय छे तेम जीवो पण कर्मों थी चारे बाजू विटायेल छे.
. जीव अने कर्मों नो अनादि सम्बन्ध मूलम्कथं विभो ! कर्मण प्रात्मनश्च,योगोऽयमेषोंऽजनि भिन्नजात्योः । अनादिसंसिद्ध इहोच्यते यो, हेनाश्मनोवारणिचित्र भान्योः ।।७ गाथार्थ - हे प्रभु ! भिन्न जाति वाला कर्म अने आत्मा नां या योग केम श्यो ? आ बन्ने नो योग आ लोक मां अनादि काल नो येल कहेवाय छे. जेवी रीते सुवर्णं अने पाषाण नो, अररिण अने अग्नि नो योग थयेल छे तेवी
रीते आत्मा अने कर्मनो योग पण अनादि कालथी थयेल छे. विवेचनः-पाँच प्रकार नां शरीर छे. प्रौदारिक, वैक्रिय,
आहारक, तैजस अने कार्मणः वैक्रिय अने औदारिक ए बे शरीरो भव धारणीय होवाथी ज्यारे जीव देव अने नरक गति मां भय छे त्यारे वैक्रिय शरीर नां योग थाय छे अने मनुष्य अने तिर्यंच गति मां जाय छे त्यारे औदारिक शरीर नो योग थाय छे वली वैक्रिय अने पाहारक लब्धि वाला जीव ने ते ते शरीर बनावतां वैक्रिय अने आहारक शरीर नो योग थाय छे. परन्तु तैजस अने कार्मण शरीर नो योग दरेक जीव ने अनादि काल नो होवाथी जीव अने कर्मनो संयोग आत्मा ने अनादि कालनो छे.
'प्रथम जीव अने पछी कर्म' एम मानिये तो शु