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गायायः- एकेक जीव प्रदेशे बुद्धि बडे कल्पना करिये तो अनंत शुभ अने अशुभ कर्मो रहेलां छे, ते कर्मो केवल ज्ञानी वड़े जाणी शकाय छे, ए कर्मोथी मुक्त थयेला जीवो सिद्ध कहेवाय छे, विवेचन:- जीवना प्रत्येक प्रात्म प्रदेशे अनंत शुभाशुभ कर्मो रहेलां छे अने एवा आत्मा ना असंख्यात अात्म प्रदेशे असंख्यात अनंत शुभाशुभ कर्मो रहेलां होवा छतां पण आपणे ते कर्मो केम जोई शकता नथी ? एवो प्रश्न थाय ते स्वाभाविक छे. तेना प्रत्युत्तर मां ग्रंथकार श्री जणावे छे के जगतमा रहेला पदार्थो बे प्रकार ना छे. रूपी अने अरूपी. वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श वाला पदार्थो रूपी छे अने वर्ण, गंध, रस, अने स्पर्श वगर ना पदार्थो अरुपी छे. अरूपी पदार्थो तो केवल ज्ञान सिवाय जाणी शकायज नहीः परन्तु रूपी पदार्थों मां पण केटलाकज पदार्थो चर्म चक्षुथीं जोई शकाय छे. केटलाक रूपी पदार्थो पण घणा भेगा थयेला होय त्यारेज चर्म चक्षु थी जोई शकाय छे. परन्तु केटलाक रूपी पदार्थो तो गमे तेटला भेगा थवा छतां पण चर्म चक्षु थी जोई शकाता नथी. दाखला तरीके मनुष्य अने तिर्यंच पशु आदि नां शरीरो चर्म चक्षुथी जोई शकाय छे. बादर पृथ्वी कायादि शरीरो अने बादर निगोद नां शरीरो घणां शरीरो भेगां थाय त्यारेज चर्म चक्षु थी जोई शकाय छे. परन्तु मूक्ष्म पृथ्वीकायादि नां