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गाथार्थ :-तमारी वात सत्य छे छतां जेम गांधी नी दुकान मां कर्पूर नो गंध फैलायेलो होय छे छतां कस्तूरी, जायफल आदि सर्व वस्तु नो गंध पण शुत्यां नथी समातो ? अर्थात् समाय छे. विवेचन:-तमारी शंका बराबर छे, छतां जगत मां केटलाक पदार्थो एवा होय छे के एकज जग्या मां अनेक पदार्थों समाई शके छे. एटला माटे अहियां दृष्टांत पूर्वक वस्तु समझावाय छे. जेमके कोई एक गांधीनी दुकान मां कर्पूर नो गंध चारे बाजू फैलायेलो छे, छतां तेज दुकान मां कस्तूरी, जायफल आदि बीजी वस्तुप्रोनो गंध पण चारे बाजू फैलायेलो छे. एटले जेम एक वस्तु ना गंध नो साथे बीजी अनेक वस्तुप्रो नां गंध पण समाई शके छे, तेम निगोदो थी भरपूर विश्व मां कर्म वर्गणा, पुद्गल राशियो,धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकाय विगेरे नो पण समावेश थई शके छे. मूलम् - तत्राऽस्ति मार्तण्डतपस्तथैव, धूपस्य धूमस्त्रसरेणवोऽपि । वायुश्चशब्दश्चसुमादिगन्धो,मातोयथास्यादथचाऽवकाश ॥३॥ गाथार्थः- त्यां सूर्य नो ताप, धूप नो धुमाड़ो, त्रस रेणुप्रो वायु, शब्द अने पुष्पादि नो गंध समायेलो छे, तेम बीजी वस्तुओ ना गंध नो पण अवकाश छे.