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शके ते देश व्यापी. दरेकसंसारी आत्मा पोत पोताना शरीर मां शरीर प्रमाण मां व्यापी ने रहेलो छे ते देश व्यापी. सिद्ध भगवंतो पोताना अंतिम शरीर ना प्रमाण ना त्रण भाग मांथी बे भाग प्रमारण व्यापी ने सिद्ध शिला ना ऊपर एक योजनना छेल्ला चौवीशमा भाग मां अलोक ने स्पर्शी ने रहे छे ते मुक्त आत्माअोनी द्रष्टिए देश व्यापी अने ज्यारे कोई आत्मा केवली१ समुद्घात करे छे ते समये ते आत्मा चौद राज लोक मां व्यापी जाय छे ते सर्व व्यापी. ए बधी दृष्टिए आत्मा व्यापक जणाय छे.
चैतन्य बे प्रकारच्छे . एक आवरण सहित अने बीजुआवरण रहित.बधा कर्मधारी (संसारी)प्रात्माप्रोनु चैतन्य कर्म थी आच्छित होवा थी आवरण सहित
१.जे केवली भगवंत ने नाम, गोत्र, अने वेदनीय ए त्रण कर्म नी स्थिति जो पोताना आयुष्य कर्भ नी स्थिति थी अधिक भोगववी बाकी रहे तेम होय तो ते त्रणेय कर्म नी स्थितिओने आयुष्य कर्म नी जेटली स्थिति वाली बनाववा पोताना आत्म प्रदेशोने शरीर बहार काढी पहेले समये लोकना नीचेना छेडा थी ऊपर ना छेड़ा सुधी १४ राज प्रमाण ऊँचौ अने स्वदेह प्रमाण जाड़ो आत्म प्रदेशोनो दंडाकार रची, बीजे समये उत्तर थी दक्षिण (अथवा पूर्व थी पश्चिम) लौकांत सुधी कपाट आकार बनावी, त्रीजे समये पूर्व थी पश्चिम (अथवा उत्तर थी दक्षिण ) बीजो कपाट आकार बनाववाथी मंथान आकार (चार पांखडा वाला रवैया नो आकार )बनावी. चौथे समये अांतरापुरी (ते केवली