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चैतन्य गणाय छे. अने सिद्ध भगवंतो नुचैतन्य कर्मना आवरण थी रहित होवाथी आवरण रहित चैतन्य गणाय छे. ए दृष्टिए चैतन्य वालो आत्मा होवाथी आत्मा चैतन्य वान कहेवाय छे. ___ वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श वाला पदार्थो रुपी गणाय
छे अने वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श रहित वाला पदार्थो अरुपी गणाय छे. आत्मा वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श रहित होवाथी अरूपी कहेवाय छे. कर्म सहित संसारी आत्मा नी अपेक्षाए जीव रुपी गणेल छे. कर्म धारक जीव केवल ज्ञानीग्रो नी दृष्टिए रूपी पणे प्रत्यक्ष होवा छतां निरतिशय ज्ञानीग्रोनी अपेक्षाए अप्रत्यक्ष होवाथी अरूपी कहेल छे. एटले प्रात्मा अरूपी कहेल छे. __ चैतन्य रहित होवाथी को जड़ छे. वर्ण. गंध, रस अने स्पर्श सहित होवाथी रुपी छे अने पूरण अने गलन एटले सड़ण-पड़ण स्वभाव वाला छे.
भगवंत ना आत्मा) संपूर्ण लोकाकाशमां व्याप्त थई जाय छे. त्यार बाद पांच मे समये अांतराना प्रात्म प्रदेशो संहरी, छ8 समये मंथान(नी बे पॉख) ना आत्म प्रदेशो प्रहरी, सातमे समये कपाट संहरी, पाठमे समये दंड संहरी पूर्ववत् संपूर्ण देहस्थ थाय ते केवली समुद्घात एमां पूर्वोक्त त्रण कर्मनो प्रबल (उदीरणा द्वारा नहीं पण) अपवर्तना द्वारा घणो विनाश थई जाय छे.