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(७) मां पुत्र नी अपेक्षाए मातृत्व, भाई नी अपेक्षाए भगिनीस्व, स्वामिनी अपेक्षा ए स्त्रीत्व विगेरे अनेक धर्मो रहेला छे. एम दरेक पदार्थ ने अनेक दृष्टि थी विचारी ते पदार्थ मां रहेलां सर्व धर्मो स्वीकारवां, तेनु नाम 'स्याद्वाद' कहेवाय छे..
. . सात नय यने सप्त भंगी द्वारा वस्तुना स्वरूप नो निर्णय करवो ए जैन शासन नो खास सिद्धान्त छे. दरेक वस्तु ने द्रव्य अने पर्याय एम वे होय छे. मूल वस्तु ते द्रव्य कहेवाय छे अने तेनो घाट, आकार आदि पर्याय कहेवाय छे. जेमके सोनु ए मूल द्रव्य छे अने बंगड़ी आदि तेना पर्यायो छे. तेवीज रीते आत्मा ए मूल द्रव्य छे अने मनुष्य भवादि तेना पर्यायो छे. या रीते दरेक पदार्थ मां द्रव्य अने पर्याय नो विचार करवो. या प्रमाणे आत्मा ना द्रव्य अने पर्यायोनी पण विचारणा करवी. दरेक वस्तुने द्रव्य दृष्टिए विचारवी ते द्र व्यास्तिक नय, अने पर्याय दृष्टिए विचारवी ते पर्यायास्तिक नय. द्रव्यास्तिक नय दरेक वस्तु नित्य छे अने पयांयास्तिक नय दरेक वस्तु अनित्य छे. बन्ने नयोनी दृष्टिए दरेक वस्तु नित्यानित्य छे. तेम प्रात्मा परण बन्न नयोनी दृष्टिए नित्यानित्य छे. परन्तु अहियां द्रव्यास्तिक नय नी. दृष्टिए प्रात्मा नित्य कहेल छे. :: विभु' एटले व्यापक, जे पदार्थ जगत मां सर्व
जग्याए व्यापी शके ते सर्व व्यापी अने अल्प जग्याए व्यापी