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रचतो नथी परन्तु पूर्वाचार्योना वचन ने अनुसारे ज ग्रंथ चु छु एम परण सूचव्यु प्रने 'स्वविदे' शब्द थी पोताना ज्ञान माटे कही पोतानी मोटाई नथी परन्तु पोतानी लघुता पण सूचवी ।
'प्रयोजन' एटले ग्रंथ रचवानो हेतु ते प्रयोजन बे प्रकारनु स्व अने पर. ते परण वे प्रकार नु. अनन्तर अने परम्पर. 'स्वविदे' शब्द थी पोतानु अनन्तर प्रयोजन, पोताना ज्ञाननी प्राप्ति. बीजाने परण ज्ञान मले ए पर नु अनन्तर प्रयोजन. स्व अने पर बन्ने नुं परम्पर प्रयोजन मोक्षनी प्राप्ति जाणवु .
आस्मा अने कर्म लक्षण
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मूलम्:
श्रात्मायमार्याः किल की दृशोऽस्ति, नित्यो विभुश्च तन वान रूपी तथा च कर्माणि तु की दृशानि, जड़ानि रूपोरिग चयाचयोनिः २ ।
गाथाथः- हे पूज्यो ! आ आत्मा खरेखर केवो छे ? आ आत्मा नित्य, व्यापक, चैनन्ययुक्त ने अरूपी छे तेमज कर्मो जड़, रूपी, पूरण गलन स्वभाव वालां छे. विवेचनः - जैन शासन स्याद्वादमय छे. दरेक पदार्थो मां अनेक धर्मो रहेला छे. जेमके एकज स्त्री मां मातृत्व, भगिनीत्व, स्त्रीत्त्व आदि अनेक धर्मो रहेला छे. ते स्त्री