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________________ ६० उपदेशतरंगिणी. लोकमां कीर्ति ने जश मेलवे बे; तेम ते सर्व लोकोने वहालो था, ने परलोकमां शुभ गतिने जजनारो थाय बे. ॥ ३ ॥ देवदाणवगंधब्वा, जरकर रकस्स किन्नरा ॥ बंजयारं नमसंति, उक्करं जे करंति ते ॥ ४ ॥ अर्थ- जे मासो जगतमां दुष्कर ब्रह्मचर्य पाले बे, तेने देव, दानवो, गंधर्वों, यहो, राक्षसो ने किन्नरो नमस्कार करे. जो देश कणयकोडिं, हवा कारे काय जिणनवणं ॥ तस्स न तत्तीयपुन्नं, जत्तिय बंजवर धरी ॥ २ ॥ अर्थ- जे माणस क्रोडोगमे सोनामोहोरोनुं दान आपे बे, अथवा सोनानुं जिनमंदिर बंधावे बे, तेने पण तेटलुं पुष्य यतुं नथी, के जेटलुं ब्रह्मचर्य पालनारने थाय बे. ॥ ५ ॥ श्रन्यदर्शन ना शास्त्रमां पण कां ने के, एकरात्रोषितस्यापि, या गतिर्ब्रह्मचारिणाम | न सा ऋतुसहस्रेण, प्राप्तुं शक्या युधिष्ठिर ॥ १ ॥ अर्थ- हे युधिष्ठिर ! ब्रह्मचर्य पालनाराजेनी एक रात्रिना उपवासथी पण जे गति थाय बे, ते गति एक हजार यज्ञोथी पण मली शकती नथी. ॥ १ ॥ एक दहाडो हिलपुर पाटणमां श्री हेमचंद्राचार्य सिद्धराजनी सजामां पधार्या, त्यारे राजाए श्रासन पवाथी तेपर ते बिराज्या. पनी राजाए पूयं के, आजकाल व्याख्यानमां श्रापशुं वाचो हो ? त्यारे हेमचंद्रजीए कह्युं के, हालमां तो स्थूलन चरित्रनुं व्याख्यान वंचाय बे. त्यारे राजाए पूधुं के, ते चरित्रमां शुं वृत्तांत बे ? त्यारे आचार्यजीए कह्यं के, पूर्वना परिचयवाली कोशा नामनी वेश्यानो तेमणे त्याग कर्यो बे, तथा
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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