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________________ उपदेशतरंगिणी. ५१ पर आववाथी ते सामंतोने पोतानुं बल देखाडवा माटे कुमारपाले मार्गमां पमेली एक आखी सोपारीनी गुणीने पोताना नालांवती उचकी लीधी, तथा एक धोबीना सात कमायां के, जे एक बीजापरसाथे पडेल हतां, तेने नालांथी वींधी नांख्यां. ते समये आम्रनट्ट कविए समयोचित राजानी प्रशंसा करवाथी कुमारपाले तेने दरेक अक्षरप्रते घोडा आप्या. पली अर्णराजाए केटलुक प्रव्य आपीने कुमारपालना केटलाक सामंतोने ज्यारे पोताना पदमां लीधा त्यारे कुमारपाल शोकातुर थयो, त्यारे एक चारणे तेने कर्वा के, कुमारपाल मम चिंत करेश, चिंतित्रं किंपि न हो ॥ जिणे तुज राज समप्पिन, चिंत करेसिइ सोइ ॥१॥ पगी ज्यारे कुमारपालनो जय श्रयो त्यारे कविए कर्वा के, जीयाच्चिरं कीर्तिलतालवाल, कुमारपाल दितिपाल नास्वान् ॥ यस्य प्रतापो हि वनेऽप्यरीणां, स्वेदोदबिंदून्नधिकांश्चकार ॥१॥ अर्थ- हे कीर्तिरूपी वेलडीना क्यारासमान अने सूर्यसरखा कुमारपाल राजा तमो घणा कालसुधी जय पामो ? के जे कुमारपालराजाना प्रतापे वनमा रहेला शत्रुने पण अधिक पसीनाना बिंऽ करेला बे. ॥१॥ विहारं कुर्वता वैरि-वनिताकुचमंडलम् ॥ महीमंडलमुदंड-विहारं येन निर्ममे ॥२॥ अर्थ- वली जे कुमारपाल राजाए पृथ्वीपर विहार करतां थकां शत्रुऊनी स्त्रीउना स्तनममलने हारो विवानुं कर्यु . ॥२॥ इत्यादि तेनी प्रशंसाना अनेक काव्यो कविए कह्यां , अने तेथी कुमारपालराजाए तेने घणुंज कीर्तिदान आपेलुं .
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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