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________________ ३२ उपदेशतरंगिणी. वली व स्त्रीनो जरतार धन्य शेठ सुपात्रदानना महाम्यथी एकावतारी य सर्वार्थसिद्धे गएला बे. वली तेवीज रीते कयवन्नादिक घणा जन्य माणसो सुपात्रदानथी संसाररूपी समुने तरी गया बे. तेम वली दुराचारी माणसो पण सुपात्रदाना महात्म्यथी सारी गति मेलवे बे. वली अनादर, विलंब, विमुखता, प्रिय वचन, तथा पश्चाताप ए पांचे उत्तम दाननां दूषणो बे. तेम आनंदाश्रु, रोमांच, बहुमान, प्रियवचन, तथा अनुमोदना ए पांच उत्तम दाननां भूषणो बे. प्रियवाणी सहित दान, अहंकार विनानुं ज्ञान, क्षमावालुं शौर्य, तथा त्यागवालुं धन ए चारे बाबतो दुर्लन बे. वधारे शुं कहेतुं ? कृपणोनुं धन निष्फलज बे. कह्युं बे के, निर्बुद्धि माणसने शास्त्रोथ, अंधने दीपकोथी, नपुंसकने स्त्रीथी, कायरने हथियारोथी, बहेराने वाजिनोथी, कदरूपाने श्राजूषपोथी, ज्वरवालाने जोजनोथी, तथा कृपणने मलेलां घणां अव्योथी शुं थवानुं बे ? माटे जे माणस सुपात्रप्रते धन आपे बे, तेज धन्य बे. कांबे के, पंडित माणस पोतानुं धन सुपात्रने पेबे, मुग्ध माणस पोतानुं धन जोगोमां वापरे बे, तथा कृपएना धननो फोगट विनाश थाय बे. एक दहाको जोजराजा वनमां गया हता, त्यां तेणे एक गलता मधुकने जोड़ने धनपाल कविने पूच्छे के, श्री मधुक केम गले बे ? त्यारे कविए कां के, ज्यारे पात्र मले बे, त्यारे धन होतुं नथी, छाने ज्यारे धन होय बे त्यारे पात्र होतुं नथी, एवी रीतना शोकमां पलो श्री मधुक अश्रुपातथी रुदन करे बे, एम डुं मानुं बुं. स्थावर छाने जंगम, एम बे नेदथी सत्पात्र बे. तेमां जिनप्रासादादिक रूप स्थावर सत्पात्र दश प्रकारनुं छे. छाने एवी रीतना सुपात्रो दीधेनुं दान महा फलदायक थाय बे.
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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