SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशतरंगिणी. . १३१ यस्मै तीर्थपतिर्नमस्यति सता यस्माबुनं जायते। स्फुर्तिर्यस्य परावसंति च गुणा यस्मिन्स संघोऽर्थ्यताम॥ अर्थ- जे संघ संसारथी विरक्त बुद्धिवालो थश्ने मुक्तिमाटे प्रयत्न करे ने, तथा जेने पवित्रपणाथी तीर्थरूप कहे , तथा जेनासमान बीजो कोइपण नथी, वली जे संघने तीर्थकर प्रनु पण नमस्कार करे , तथा जेथी बुद्धिवानोने कल्याण थाय ने, वली जे संघनी प्रख्याति ने, तथा जेनामां गुणो वसी रह्या ने, ते संघनी पूजा करवी. नावार्थ- आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविकारूप एवो जे संघ, क्रिया, ज्ञान, दर्शन, दान, शील, तथा तपादिक रूप पुण्योथी मुक्तिमाटे उद्यम करे , वली जे संघने महान् शषि उत्कृष्ट तीर्थरूप गणे , वली आ आर्यदेशमां उत्पन्न वाथी ते संघसमान बीजो कोइ पण नथी. केमके, सुप्रव्य, सुकुलमा जन्म, सिपत्र, समाधि, अने संघ ए पांचे सकारो पुर्खन कह्या . वली धर्म देशना देती वेलाए “ नमो तिथ्थस्स" एम कहीने श्री तीर्थकर प्रनु पण ते संघने नमस्कार करे बे. वली ते संघश्रीज जिनप्रासाद, जिनप्रतिमा, तीर्थयात्रा, पदप्रतिष्ठा, स्वामिवात्सत्य, दान शालार्ड, अमारी पटह विगेरे मांगलीकना कार्यों थाय जे. वली ते संघनो महिमा पण मोटो जे, केमके, राजा जेवा पण संघनी आज्ञा पोताना मस्तकोपर चडावे , अने तेनी विराधना करता नथी. वली जे संघनी सामे थइ उलटी रीते चाले ने, तेढ गई जिसराजा तथा नमुचीप्रधान आदिकनीपेठे मुःख पामे बे. वली तेज संघमां दान, शील तथा सत्यादिक गुणो वसी रहेला बे. एवी रीतना महा प्रनाविक संघने वस्तुपालमंत्रीनी पेठे पुण्यशालीए लो
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy