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महाराज कहे छे के कुसुमपुर नामना नगरमा एक शेठने घेर बे साधु उताँ हता. एक मुनि भोळा, साधारण बुद्धिना, सरळ, गुणग्राही अने टुंकामा कहीए तो 'भद्रक' हता, ज्यारे बीजा विद्वान बह हता पण कपटी अने निंदा करनार हता. ज्ञानी महाराज कहे छे के लोको जो के बीजानी वाह वाह बोलता हता, पण पहेलो साधु थोडा काळमां मोक्षे जशे ज्यारे बीजो घणो संसार परिभ्रमण करशे. मायायुक्त ज्ञान पण नकामं छे बलके वधारे नुकशान करनारुं छे. "शास्त्रमा बीजी बधी बाबतमा स्याद्वाद छे, परंतु माया करवाना प्रसंगो ( धर्मोपदेशादि ) आवे ते वखते निष्कपटी रहेQ ए आज्ञा तो जैन शास्त्रमा एकांत छे" आ टंकशाळी वचनो उपाध्यायजी महाराजनां छे. जेम मायाथी आ भवमा लाभ थतो नथी तेम परभवमां पण लाभ थतो नथी. श्री सिंदूप्रकरमां कर्तुं छे केविधाय मायां विविधरुपायैः, परस्य ये वञ्चनमाचरन्ति ॥ । ते वञ्चयन्ति त्रिदिवापवर्ग-सुखान् महामोह सखाः स्वमेव ॥१॥
अर्थः-जे प्राणीओ अनेक प्रकारना उपायो वडे माया करीने बीजाओने छेतरें छे तेओ महामोहना मित्र होइने पोताना आत्मानेज देवलोक अने मोक्षना सुखथी छेतरे छे. __ आवा आवां अनेक कारणोथी मायानो त्याग करवो ए उचित छे. माया अंतरनो विकार छे अने तेथी बीजा माणसो तेने जोइने ते संबंधी उपदेश के शिक्षा आपे ए पण घणुं खरं बनतुं नथी.
१ विधि निषेध नवी उपर्दाशे, सुणो संताजी । एकांते भगवंत, गुणवंताजी।। कारणे निष्कपटी यवु,सुणो संताजी।ए आणा छे तंतगुणवंताजी।।(यशोविजयजी).
सुख प्राप्तिनो उपाय - धर्म सर्वस्व,
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(वंशस्थ छंद) धनाङ्गसौख्यस्वजनानसूनपि, त्यज त्यजैकं नच धर्मर्माहतम् ॥ भवन्ति धर्माद्धि भवेभवेऽर्थितान्यमुन्यमीभिः पुनरेष दुर्लभः॥७॥ . अर्थः- पैसो शरीर, सुख, सगासंबंधीओ अने छेवट प्राण पण