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________________ (५७) शरीरने कलेश थवा उपरांत भवांतरने विषे बीजुं कांइ पण फळ मेळववानो नथी अने ते धर्मोपण भवांतरमा मळवाना नथी. भावार्थः- शास्त्राभ्यास, प्रतिक्रमण ( आवश्यक ) विगेरे धार्मिक अनुष्ठान, बाह्याभ्यंतर बार प्रकारनां तप, उपशम, दम, यम, दान विगेरे विगरे अनेक धर्म कार्यों करतां छतां पण साथे माया होय तो वेठ याय छ, लाभ यतो नथी. माया-कपट-लुच्चाइ-बगवृत्ति एनो त्याग करवो बहु मुश्केल छे. वळी क्रोध तथा मान बहुधा जणाइ आवे छे, पण माया गुप्त रहीने काम करे छे तेथी सामा माणसने तेनी खबर पडती नथी अने केटलीक वार माया करनारने पण खबर पडती नथी. जेने लोको 'भद्रक' जीवो कहे छे तेवा थवानी बहु जरूर छे-एटलुं तो सत्य छे के आवा भद्रक प्राणीओने कर्मबंध बहु ओछो थाय छे. उपाध्यायजी महाराज कही गया छे के "केशनो लोच कराववो, शरीरपरथी मेलनो त्याग न करवो, भूमिपर शयन करवू, तपस्या करवी, व्रतो धारण करवां विगेरे आचरणो आचरवां ते साधुने सहेल छ पण मायानो त्याग महा मुश्केल छे" आवा विद्वान् अवलोकनकारनां वचनोपर खास ध्यान खेंचवामां आवे छे. मावा बहु उंडाणा थाय छे तेथी बहुधा ते जाणी शकाती नथी, सीफत, एटीकेट (गृहस्थाइना नियमो), बीन जरुरीआती विवेक अथवा formality विगेरे मायाना अनेक भेदो छ. आ जमानाना जीवनमां मायाना प्रसंगो वधता जाय छे. राज्यन अंग बहुधा क्रोध ने मान होय छे तेने बदले माया ने लोभ थता जाय छे. आ जमानामां उपर उपरनी टापटीप वधती जाय छे अने वधशे एम लागे छे. वळी वाणीआपणुं-ए मायाना पर्याय तरीके वपराय छे. आथी जैन धर्मने अनुसरनाराआए मोटा भागे आ पापथी वधारे डरवानी जरूर छ. उदयरत्नजी कहे छे के " मुख मीठो जुठो मनेजी कुड कपटनो रे कोट, जीभे तो जीजी करेजी, चित्तमा ताके चोट रे, प्राणी! म करीश माया लगार." आवी रीते मायाने ओळखी, तेनो त्याग करवानी मुश्केली संबंधी विचार करी, ते पर चित्त लगाडी, मायानो त्याग करवो जोइए. हवे शास्त्रकार कहे छ के तमे गमे तेवू धर्मकार्य करो पण तमारा अंतरमां जो माया-कपट हो तो तमने फोकटनी महेनतज थशे. उपाध्यायजी
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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