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________________ (५९) तजी दे, पण एक वीतराग अहंत परमात्माए बतावेलो धर्म तजीश नहि धर्मथी भवोभवमां आ पदार्थो, (पैसो सुख विगेरे) मळशे, पण एथी (पैसा विगेरेथी) ते (धर्म) मळवो दुर्लभ छे. ॥७॥ भावार्थ:- धर्मने माटे सर्व तजी देवू ए योग्य छे. पण कोइ पण वस्तु माटे-गमे तेवा लाभ माटे धर्मनो त्याग करवो ए योग्य नथी. माणस पांच दश रुपिया माटे धर्मनो त्याग करे छे, जूलु बोले छे अने केटलाक जीवो तो एक दमडी माटे सो सोगन खाय छे. इंद्रियोने तृप्त करवा अभक्ष्य भक्षण करे छे. अकाळे भोजन करे छे. अपेयर्नु पान करे छे अने गमे तेम बोले छे. आ सर्व थाय छे तेनुं कारण बहु विचारवा जेवू छे. आ जीवने पोतानुं शुं छे अने पारकुं शुं छे, आत्मिक शुं छे अने पौद्गलिक शुं छे तेनुं भान नयी एटले भेद ज्ञान नथी. आ ज्ञान ज्यां सुधी योग्य रीते यतुं नथी त्यां सुधी सर्व नकामुं छे. ए ज्ञान वगर जीव जेटलां कहो तेटला माठा आचारणो करे छे; पण बिचारो समजतो नथी के धर्मादधिगतैश्वर्यो, धर्ममेव निहन्ति यः॥ कथं शुभायतिर्भावी, स स्वामिद्रोह पातकी ॥ अर्थ:-जे धर्मना प्रभावथीं ऐश्वर्थ प्राप्त करे तेज ऐश्वर्यथी तेना धणी धर्मनो नाश करे छे त्यारे तेनुं सारं ते केम थाय? ते तो स्वामीद्रोही छे अने तेथी महा पापी छ. आवी रीते धर्मनो नाश करनार स्वामीद्रोह करे छे अने स्वामीद्रोह करनार आ भव अने परभवमां दुःखी थाय छे. शास्त्राकार कहे छे के "धर्म अर्थ इहां प्राणनेजी, छंडे पण नहि धर्म" सत्ववंत प्राणी होय छे ते धर्मने माटे जीवीतव्य तजे पण जीवीतव्यने माटे धर्म न तजे. कारंण के धर्म ए सर्वस्व छे अने एनाथी सर्व मळे छे, पण ज्यारे धर्मने गुमावी देवामां आवे छे त्यारे पछी ऐश्वर्य यौवन, वैभव, कांइ पण मळतुं नथी अने राखेलं होय छे ते पण जाय छे; माटे प्राणांत कष्टे पण धर्मनो त्याग न करवो. आ हेतुथीज सुक्तमुक्तावलिकारे धर्म, अर्थ अने कामरुप त्रण पुरुषार्थोमां केवळ धर्मनेजप्रधान कह्यो छे. तत्रापि धर्म प्रवरं वदन्ति–ते त्रणे पुरुषार्थमां धर्म पुरुषार्थने ज्ञानीओ श्रेष्ट बतावे छे. गृहस्थोए त्रणे पुरुषार्थ सरखी रीते साधवा योग्य छे एम जे कहेवामां आवे ते पण ज्यारे धर्मने बाध न यतो होय त्यारेज समजवु.
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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