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श्री वैराग्य शतक ने लोकोने आनंद थाय छे. एमां शो . हेतु छे ! लवण समुद्रनी एक शिखा-पाणीनो उछाळो भरतक्षेत्रने पाणीमय करी दे तेम छे, छतां एम केम नथी बनतुं ! सिंह वाघवरू वगेरे जंगली-हिंसक प्राणिओ मानव जातने केम मारी नाखता नथी ! दानावल मोटी मोटी आगो-अग्निना उत्पातो आखा जगतने बाळीने भस्मीभूत केम करतां नथी ! आ बधानुं कांई कारण होवू जोईए. देखाता कारणो-अन्यथा सिद्ध छे-नकामां छे, लुलां छे. देखाता हेतुओ सेंकडो वखत निष्फळ निवड्या छे ने निवडे छे. ए सर्व- प्रबळ कारण कोई होय तो ते धर्मनो प्रभाव छे. धर्म प्रभावे जगतमां शान्ति छे. सुख छे, आराम छे. ज्यां धर्मनो प्रभाव नथी. त्यां युद्धो मचे छे. अतिवृष्टि अनावृष्टिना उपद्रवो थाय छे चोथा आरामां धर्मनो प्रभाव वधु हतो तो त्यारे सुख शान्ति पण वधु हता पंचम काळमां धर्म-घटी गयो छे. तो सुख-शान्ति पण तेवां नथी. वळी छठ्ठा आरामां धर्म जोवा नहिं मळे तो सुख पण नहिं देखाय, कुदरत पण धर्मने आधीन छे. अधर्मिनी कुदरत पण विफरेली होय छे एवो महाप्रभावपूर्ण-धर्म श्रीजिनेश्वर भगवन्ते प्ररूप्यो छे, उपदेश्यो छे ते अभिष्टपूरक, वांच्छितदायक, कामितपूरण कल्पतरू समान श्रीजिन धर्मने कोण एवो मूरख होय के न चाहेन इच्छे. तेनी आराधनामां न जोडाय, सर्व समजु जन धर्मभावनाने आ रीते विचारे ने तेने सेवी सुख मेळवे.