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________________ ६३ श्री वैराग्य शतक विचार, संवर साथे मैत्री बांध, तेनी सलाह प्रमाणे वर्तन कर. ते तारी बधी मुंझवण. टाळी देशे. आश्रव करतां संवरनुं बळ विशेष छे. ए एक एक आश्रवने बंध करी देशे. मिथ्यात्वने सम्यक्त्व दुर करशे. अविरतिने सत्तर प्रकारना संयम हटावशे. आर्तध्यान अने रौद्रध्यान मनोवृत्तिने स्थिर करवाथी नहिं थाय, अथवा धर्मध्यानने शुकूल ध्यान ध्याववाथी नहिं थाय. क्षमाथी क्रोध जीताशे. मृदुतानम्रताथी मन-अभिमान दुर थशे. ऋजुता-सरलताथी माया नाश पामशे लोभनुं नाम ज न ल्यो. ए भयंकर खाडी छे. ए कोईए पूरी नथी. जेम जेम ए पुरवा जाय, तेम तमे ए ऊंडीने ऊंडी ज जती जाय छे. माटे तेना पर संतोष सेतु तृप्ति-संतोषनो पुल बांधी पेले पार पहोंची जवाशे. मनवचनने कायानी प्रवृत्तिओ मन गुप्ति-वचन गुप्ति ने काय गुप्तिथी रोकाशे. सन्मार्गे वाळी लेवाशे. ५७-संवरनी सहायथी ४२-आश्रवने बंध करी शकाशे. आश्रवना बारणा बंध करवानी संवर ए कळ छे, ५समिति-३-गुप्ति १०यतिधर्म १२-भावना २२-परीषह, ने ५-चारित्र-ए सत्तावन संवर छे. एक वखत एनो अनुभव करी जोवो. जोई ल्यो तमारा केटला दुःखो नाश पामी जाय छे. संवर भावनाने यथार्थ समजी वर्तनमा उतारो, तो संसारना दुःखमात्र जोत जोतामां चाल्यां जशे, ५७ संवरमांथी एक पछी एकने सादी आश्रवने हठावो ने मोक्ष मेळवो ने सुखी थाव.
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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