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________________ ३८ श्री वैराग्य शतक वींटेल. एमां मोह पामवा जेवू शुं छे ! ए मळमूत्रनी कोठीमां सार शो छे ! ए मायामां कोण मुंझाय ए फंदामां कोण फसाय. ए मोहमां अनंत भव अथडामण करी, पार न आव्यो, माटे हवे एनो त्याग करी वैरागी बन-निविषयी बन, मन वश कर-स्त्री तरफ दृष्टि पण न कर. तो जलदी छुटीश. (२६-२७) (२८-२९) नारीनी विविध भयंकर वस्तुओ साथे सरखामणीविषवल्ली पण भोंय न उगे सिंहण पण गुफा नहीं ठाम मोटो व्याधि पण वैद्योनां शास्त्रविषे नही एनुं नाम. मेह विनानी एह विजळी कहो कोणथी जाणी जाय सर्व दुःख, साधन एवी स्त्रीने चेतन ! शाने व्हाय. दरमांनव रहेती पण नागणलोहमयी नहीं पण तलवार, देखा दे दिनरात छतां पण राक्षसीनो ए तो अवतार. नहीं प्रवाही पण ए मदिरा जोवाथीय जनो मुंझाय, सर्व दुःखनुं साधन एवी स्त्रीने चेतन ! शाने व्हाय. विवेचन-कोई कहेशो के ए कई वस्तु छे. ए झेरीली, जोवा मात्रथी झेर चडे एवी विषनी वेलडी छे. पण जमीन उपर उगती नथी. ए हाथमां चडे ए बधाने फाडी खानारी सिंहण छे, पण पर्वतनी गुफामां के जंगलमा रहेती नथी. ए चमक चमक करती विजळी छे, पण मेघ-वादळ
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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