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श्री वैराग्य शतक
३९ वगर थाय छे. कहो ए शुं छे! ए डंखीली नागण छे, पण दरमा नथी रहेती. ए ताती तलवार छे, एणे घणाना माथा वाढया छे, पण लोढाथी नथी बनी. ए भयंकर राक्षसी छे, पण दिवस अने रात चोवीसे कलाक देखाय छे, रातेज देखाय एवी आ नथी. ए मदिरा-दारु छे, बीजी मदिरा पीवाथी मुझवे, तो आ जोवाथीए नसो-घेण चडावे छे, पण प्रवाही नथी. कहो ! ए कई चीज छे, ओळखी-जाणीसमज्या ! ए, ए छे. 'स्त्री' सर्व संकटनु साधन-सर्व दुःखनुं मूळ एनो मोह छोडयो तो बच्या. बाकी एना सपाटामां आवी. गया तो मर्या समजजो एक कविए कह्यु छ केकनक कनक ते सोगुणी-मादकता अधिकाय,
एक खाते बोहरात है, एक पाते बोहराय त्यारे बीजाए वधार्यु
कनक कनक ते सोगुणी-कनक वरणी अधिकाय, एक खाते एक पावते, एक देखे बोहराय
भावार्थ-कनक- धतुरा करतां कनक -सोनामां मादकता सोगणी वधारे छे. कारणके एक खावाथी मद चडे छे, ज्यारे बीजं मळवा मात्रथी मद चडे छे.
धतुरो अने सोना करतां पण कनकवरणी-स्त्रीमां सहुथी सोगणी मादकता छे, कारण के:-एक खावाथी बीजुं पामवाथी मद चडे छे. ज्यारे आने जोवा मात्रथी मद, चडे छे.