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________________ श्री वैराग्य शतक ते नामे बोलावो पण बधुं एनुं ए, एने भारे बधा दबायेला छे, एनो मोह न होय, तो क्यारनो पार आवी जाय हे चेतन ! एवी स्त्रीना मोहमां शा माटे फसाय छे ! (२३) । (२४) स्त्रीना वचन-वदन अने नयनमां मोहाता जीवोने उपदेशस्नेहमनोहर वचन वधूनां हरिणगीतनी जेवां जाण.. शशीसममुख तेसुखकरनहिं पण पतंगदीपनी जेवं मान. नेत्र बाण ए बाणज कोमळ हैयुं जेनाथीय वींधाय, सर्व दुःख- साधन एवी स्त्रीने चेतन ! शाने व्हाय. विवेचन-हे आत्मन् ! स्त्रीनां स्नेहाळां-मनने मोह पमाडतां वचन सांभळीने मुंझातो नहिं. फसायो तो-मरायो समजजे, शिकारी हरणने पकडवा गीत गाय छे, मदारी सापने सपडाववा मोरली वगाडे छे एवं आ जाणजे, आ स्त्री ए मोह राजानी मोरली छे. एना मुखमांथी नीकळता वचनो शिकारीनी मोरलीनी माफक भयंकर छे, एमां आसक्त थयो तो मोह-मदारी पकडीने तने नचावशेभमावशे, तारा दुःखनो पछी पार नहि रहे. आ स्त्रीना मुखमां मोह न करतो. शशिवदना-चंद्रमुखी वगेरे शब्दो सांभळी, स्त्रीना मुखने चंद्र न समजी बेसतो. पतंगीयुं दीवामां मोही झंपलावे छे ने प्राण खोवे छे. एम हे पतंगीया ! तारे माटे ए मुख, दीवानी शिखा छे, तुं एमां मोह्यो तो मर्यो समज्जे.
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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