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________________ ३३ श्री वैराग्य शतक ॥ अथ स्त्रीमोहत्यागाधिकारः । (२३) स्त्रीना मोहमां फसायेल आत्माओ नरक वगेरेना दुःखो सहन करे छे, माटे स्त्री पर राग-मोह ओछो करवा-न करवा स्त्री, वैराग्य जनक विविध वर्णन. तेमां प्रथम आत्मा भवसमुद्रमांथी बहार न नीकळी जाय माटे स्त्रीरू पी शिला गळे बांधेल छे, ए वर्णनसर्व चेतनो भवसागरमां जेने लईने डुबी जाय, कर्म नृपतिए एम विचारी सुंदर शिल्ला एक घडाय. स्त्री कामिनी सुंदरी महिला एवां एनां नाम पडाय, सर्व दुःख- साधन एवी स्त्रीने चेतन ! शाने व्हाय. विवेचन - घणा आत्माओने संसार-सागरनो पार पामता जोईने, कर्मराजाने विचार थयो के-आ रीते जीवो जो पार पहोंची जशे तो मारी वस्ती तद्दन घटी जशे. चिन्ता-मग्न जोईने मोह नामना मंत्रीए राजाने पूछयु के-शुं चिन्ता करो छो! राजाए उपर प्रमाणे जणाव्युं, मंत्रीए कह्यु -एमां चिन्ता जेवू शुं छे ? आपणे एक शिल्ला बनावीए ने दरेकने गळे बांधीए एवी सुंदर शिल्ला बनावीए, के बधा होंशे होंशे - पराणे बंधावे बस गळे शिल्ला वळगी एटले आपणे निश्चित-ए डुब्या ज रहेवाना. पछी तरी शकवाना नहिं.. एम विचार करीने एक मनोहर शिल्ला घडी-ए शिल्ला, एज स्त्री, एने कामिनी-ललनासुंदरी-महिला-नारी-वनिता-कान्ता-सीमन्तिनी-प्रमदा वगेरे गमे
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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