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________________ २८ श्री वैराग्य शतक गरममां गरम के ज्यां १२०थी १२५ डिग्री ताप पडतो होय, एवां क्षेत्रमा लावीने मुकवामां आवे तो थाय. एने एम लागे के मने पुष्करिणी वाव मळी. हे चेतन ! एवी गरम नारकीमां न जq होय तो आत्महित करवामां तत्पर बन. (१७) (१८) नरकना विविध दुःखोनु वर्णन. स्वीयमांसनुं भोजनने उकळता ताम्ररसोनुं पान, तीव्रशस्त्रथी छेदन भेदन ने वैतरणीमांहे स्नान. देहतणां ज्यां खंड करीने तप्त तेलमा खुब तळाय, ए दुःख नरकतणां हे चेतन ! कहेने तुजथी केम खमाय. विवेचन-जेओए आ जन्ममां दया नथी पाळी, महाहिंसा आचरी छे. मुंगा प्राणीओने हणीने तेनुं मांस खाईने पोतानो देह पोष्यो छे. मदिरापान करीने-दारू पीने, उन्मत्त आचरण कर्यु छे. एवा आत्माओने नरकमां परमाधामी-देवो तेनाज शरीर कापीने, कडकडती कडाईमां तळीने खवरावे छे. भूख लागे त्यारे पोताना ज अंगोपांगने आरोगवा पडे छे. तरस छीपाववा माटे धग धगता तांबानो रस पीवा मळे छे. लोही-परू -रसी-मांस हाडकाथी भरेली वैतरणी नदीमां पराणे नवरावे ने तेमांथी नीकळवा न दे, नीकळवा जाय तो उपरथी मार मारे. हे चेतन ! ए दुःखथी डरतो हो तो प्रथम पापाचरणथी डरजे, पाप करतां विचार करजे, नहिं तो ए दुःखो भोगव्ये ज छुटको छे.
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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