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________________ श्री वैराग्य शतक . होय छे के ए तो एज सहन करी शके. युवान, सशक्त, निरोगी एवो लुहारनो पुत्र एक मोटा लोढाना गोळाने अग्निमां पन्दर दिवस सुधी सतत तपावे, ने पछी ए गोळो शीत नरकमां लइने मुकवामां आवे तो ए ठंडो पडी जाय एटलुं ज नहिं पण निमेष मात्रमां आंख मींचीने उघाडीए एटलामां ए गोळो ठंडीथी भांगीने भुक्को थई जाय, तेना अणुए अणु छुटा पडी जाय. आवी ठंडीनी वात सांभळता पण तने टाढ चडती होयतने डर लागतो होय, तो हे जीव ! पापथी पाछो फर, दुष्कृत करतो अटक, सदाचारी बन. (१६) ( १७ ) नारकीनी गरमीनुं वर्णन. २७ ग्रीष्मतापथी आकुळ व्याकुळ हस्ती पुष्करिणीमां न्हाय, जे शान्तिनो अनुभव एने शीतळ जळमां न्हातां थाय. मनुष्यलोकनां उष्णक्षेत्रमां पण नारकीओ युं हरखाय, ए दुःख नरकतणां हे चेतन ? कहेने तुजथी केम खमाय. विवेचन- पुष्करिणी वावमां एकदम शीतल जल होय छे. उनाळानी गरमीथी आकुल व्याकुल, खिन्न, बेचेन बनेल हाथीने ए वावमां स्नान करवा-क्रीडा करवा छुटो मुक्यो होय, तो ते एकदम आनंदमां आवी जाय, तेना कलेजामां एकदम ठंडक वळे एवी ज़ ठंडकनो- शान्तिनो अनुभव जो गरम नारकीमां गरमी अनुभवता नारकीने अहिंना उष्णमां उष्ण
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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