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श्री वैराग्य शतक अनेक विद्वान शिष्योने तेओश्रीए तैयार कर्यां छे. आ ग्रन्थकर्ताना पण तेओश्री परमपूज्य गुरू वर्य छे. (जेने१) परमात्मामां परम भक्ति छे, जेवी देवमां छे तेवीज गुरू मां छे. तेज महात्माने आ कहेल (शास्त्रोना) विचारो खीली नीकळे छे. ए शिष्ट वचनना अनुसार तेओश्रीने नमस्कार करी आ ग्रन्थ आरंभवामां आवे छे.
यस्य देवे परा भक्ति-र्यथा देवे तथा गुरौ । तस्यैते कथिता ह्याः, प्रकाशन्ते महात्मनः ॥१॥
(७) समरी सरस्वती मात उदार-विद्यानी अधिष्ठायिका श्री सरस्वती देवी छे. कविजनोने ते मातानी जेम पोषण आपे छे, माटे तेनुं स्मरण क ए ग्रन्थ रचनामां जरूरी छे,श्री यशोविजयजी-उपाध्यायजी महाराजे पण प्रायः सर्व ग्रन्थनी ऎथी शरूआत करतां सरस्वतीने स्मरेल छे. एँ ए सरस्वतीनो बीज मन्त्र छे. अहीं पण ए रीते श्री सरस्वती देवीने संभारी ग्रंथनी शरूआत करी छे.
(८) रचुं "वैराग्य शतक' आ सुखकर-राग ए आत्मानो महान शत्रु छे. आत्माना विकासने रूंधनारअटकावनार आ शत्रुना नाश माटेनुं जे साधन तेज 'वैराग्य' छे. आ सो श्लोकोमा रागना जुदा जुदा स्वरूपो बतावी तेने दूर करवाना-हठाववाना उपायो सचोट रीने समजाव्या छे. आ 'वैराग्य शतक' जीवोने सुखकर एटले साचुं सुख मोक्ष