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________________ श्री वैराग्य शत्तक ते तरफ दोरनार छे, तेने आपनार छे. (९) प्राचीन उक्तिने अनुसार-आवं आ 'वैराग्य शतक' मन:कल्पनाथी नहि पण प्राचीन-पूर्वना महान् आचार्योना शास्त्रो-श्री आध्यात्मकल्पद्रुम-शांतसुधारस प्राकृत वैराग्यशतक आदिना आधारे अत्यारनी जनताने बोलवामां तेमज समजवामां रसप्रद थई पडे ते रीते भाषामां सुंदर शैलीथी बनाववामां आव्युं छे. १ ___ (२) धर्मक्रिया करवानी मोसमबहुकाले बहुविधदुःख सहेतां धर्मक्रिया करवानो काल नरभवरूपे प्राप्त थयो छे पुण्यप्रचयथी चेतन हाल. अल्पकालस्थायी सुखदायी सुरस्मकिती ज्हेनेच्हाय, दश दष्टान्ते दुर्लभ एने. हारी जईने जन पस्ताय. विवेचन-मनुष्यभव ए धर्मक्रिया करवानी मोसम छे. एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिर्यचपंचेन्द्रिय वगेरे भवोमां घणो काळ भटकया पछीथी ते मळे छे, ते मेळवतां आत्माने घणां कष्टो सहन करी, अकाम निर्जरा करी, पापकर्मनो क्षय करवो पडे छे. शुभ अध्यवसायथी पुण्यनो संचय करवो पडे छे. मानव जन्म मळ्या पछी पण ते घणाज ओछा समय सुधी रहे छे. हालना पंचम काळमां सो वर्षना (सामान्य रीते उत्कृष्ट) आयुष्यमां-बाल्यावस्था, वृद्धावस्था निद्राकाळ,
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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