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________________ श्री वैराग्य शतक (६) श्री गुरू नेमि सूरीन्द-तेओ श्रीनो जन्म काठियावाडना काश्मीर तरीके प्रसिद्धि पामेल मधुमती (महुवा) नगरीमां त्यांना प्रसिद्ध श्रावक लक्ष्मीचंदभाईने त्यां दीवालीबेननी कुक्षीए विक्रम संवत १९२९ना कार्तिक सुदी १ ने (बेसता वर्षे) थयेल छे. सोळ वर्षनी उमरे सिंहनी जेम भावनगरमां श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज्जीनी पासे सं. १९४५ मां दीक्षा लीधी. गुरूभक्ति, स्वाश्रयीपणुं, विद्वत्ता, व्याख्यानशक्ति, निस्पृहता वगेरे सद्गुणो तेमनामां एकी साथे खीली उठ्या. संवत् १९६०मां वळामां पन्न्यास पदथी अने सं. १९६४मां भावनगरमां अखिल हिन्दुस्ताननो श्री संघ एकत्रित थयो हतो ते वखते कोन्फरन्स प्रसंगे तेओश्रीना ज्येष्ठ गुरुभाई पन्न्यासजी श्री गंभीर विजयजीए विधिपूर्वक आचार्यपदथी विभूषित कर्या, अत्यारे साधु संस्थामां व्याख्याननी नवी शैली जोवाय छे. तेनी शरूआत करनारा, तेमज दीक्षाना. मार्गने राजमार्ग बनावनारा, तीर्थोना वहीवटने व्यवस्थित वहीवटनी तालीम आपनारा तेओश्री छे. जैन समाजना प्रत्येक धार्मिक कार्यमां मुनिओर्नु प्राधान्य-ए एमनी सर्जना छे. तीर्थना उद्धारो विधिपूर्वक जिन बिम्बोनी प्राणप्रतिष्ठा, राजा-महाराजा अने विद्वानोनुं जैन धर्म तरफ आकर्षण वगेरे कार्यो तेओश्रीना जीवनना परम ध्येयरूप छे. नैष्टिक ब्रह्मचर्य, अपूर्व पांडित्य, प्रतिभा, स्पष्ट वक्तृत्व वगेरे तेओश्रीना अजोड गुणो छे,
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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