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श्री वैराग्य शतक
२१. श्री नमिनाथनी स्तुति. वैरिवंद नम्यो प्रभु जनकने, गर्भ प्रभावे करी, कीर्तिचंद्रकरोज्ज्वला दिशिदिशि, आ विश्वमां विस्तरी; आपी बोध अपूर्व आ जगतने, पाम्या प्रभु शर्मने, पुण्ये श्री नमिनाथ आप चरणे, पाम्यो खरा धर्मने.
२२. श्री नेमिनाथनी स्तुति. लोभावे ललना तणा ललित शुं त्रिलेकनां नाथने, कम्पावे गिरि भेदी वायु लहरी, शुं स्वर्ण ना शैलने; शुं स्वार्थे जिन देव ए पशु तणा, पोकारना सांभळे, श्रीमन्नेमि जिनेन्द्र सेवन थकी, शुं शुं जगे ना मळे.
२३. श्री पार्श्वनाथनी स्तुति. धुणीमां बळतो दयानिधि तमे, ज्ञाने करी सर्पने. जाणी सर्व जनो समस्त क्षणमां, आपी महा मंत्रने; कीधो श्री धरणेन्द्रने भव थकी, तार्या घणा भव्यने, आपो पार्श्व जिनेन्द्र नाश रहिता, सेवा तमारी मने.
२४. श्री महावीर स्वामिनी स्तुति. श्री सिद्धार्थ नरेन्द्रना कल नभे, भान समा छो विभ म्हारा चित्तचकोरने जिन तमे, छो पूर्ण चन्द्र प्रभुः पाम्यो छ पशुंता त्यजी सुरपणुं, हुं आपना धर्मथी, रक्षो श्री महावीर देव मुजने, पापी महाकर्मथी.
इति चतुर्वि शति-जिन-स्तुतयः समाप्ताः