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श्री वैराग्य शतक
॥ ॐ अहँ नमः ॥ ॥ श्री नेमि-सूरीश्वर-सद्गुरूभ्यो नमः ॥ श्री वैराग्य शतक
(संक्षिप्त विवेचन युक्त) महापुरूषोनी प्रणालिका छे, के कोईपण शुभकार्यनी शरूआतमां मंगल करवं, मंगल करवाथी बे लाभ थाय छे. (१) अशुभ कर्मनो नाश अने ते द्वारा कार्यनी समाप्ति. (२) उपकारी पुरूषोनुं स्मरण अने ते रीते कृतज्ञता गुणनी खीलवणी, वैराग्य शतकनी शरू आत करतां ग्रन्थकार इष्टदेवने नमस्कार करवा रूप-सुंदर मंगल करे छे. ते आ प्रमाणे
. सवैया (झेर गयां ने वेर गयां-ऐ रीतीए.) श्री आदीश्वर शान्तिजिनेश्वर नेमिप्रभुने पास जिणन्द, वीरप्रभु ए पांच प्रभुने छठ्ठा श्रीगुरू नेमिसूरीन्द ए सर्वेने प्रणये प्रणमी समरी सरस्वती मात उदार, रचुं 'वैराग्यशतक' आ सुखकर प्राचीन उक्तिने अनुसार
विवेचन . ... (१.) श्री आदीश्वर-त्रीजा आराना अन्तमां ज्यारे