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________________ श्री वैराग्य शतक १७. श्री कुंथुनाथनी स्तुति. जेहनी मूर्ति अमृत झरती धर्मनो बोध आपे, जाणे मीठं वचन वदती शोक संताप कापे; जेहनी सेवा प्रणय भरथी सर्व देवो करे छे, ते श्री कुंथु-जिन चरणमां चित्त मारूं ठरे छे. १८. श्री अरनाथनी स्तुति. जे दुःखोना विषम गिरिओ वज्रनी जेम भेदे भव्यात्मानी निबिड जडता सूर्यनी जेम छेदे; ज्हेनी पासे तृण सम गणे स्वर्गने इन्द्र जेवा, एवी सारी अरजिन मने आपजो आप सेवा. . १९. मल्लिनाथनी स्तुति. तार्या मित्रो अति रूपवती स्वर्णनी पूतळीथी, एवी वस्तु प्रभु तुज नथी बोध ना थाय जेथी; सच्चारित्रे जन मन हरी बाळथी ब्रह्मचारी, नित्ये मल्लि - जिनपति मने आपजो सेव सारी. २०. श्री मुनिसुव्रत स्वामिनी स्तुति .: (शार्दूलविक्रीडित.) अज्ञानांधकृति विनाश करवा. जे सूर्य जेवा कह्या, जेहणे अष्ट प्रकारना कठिन जे, कर्मो बधां ते दह्यां; जेनी आत्मस्वभावमां रमणता, जे मुक्ति दाता सदा, एवा श्री मुनिसुव्रतेश नमीए, जेथी टळे आपदा.
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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