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________________ श्री वैराग्य शतक वासुपूज्य जिनेश हुं प्रणयथी, नित्ये नमुं आपने. १३. श्री विमलनाथ स्तुति. ( मंदाक्रान्ता.) जेवी रीते विमल जलथी वस्त्रनो मेल जाये, तेवी रीते विमल जिनना ध्यानथी नष्ट थाये; पापो जुना बहु . भव तणा अज्ञताथी करेला, ते माटे हे - जिन ! तुज पदे पंडितो छे नमेला. १४. श्री अनंतनाथनी स्तुति. जेओ मुक्ति नगर वसता काळ सादि अनंत, भावे ध्यावे अविचलपणे जेहने साधु - सन्त; जेहनी सेवा सुरमणि परे सौख्य आपे अनन्त, नित्ये म्हारा हृदयकमळे आवजो श्री अनन्त. - १५. श्री धर्मनाथनी स्तुति. संसाराम्भो - निधि जळ विषे बूडतो हुं जिनेन्द्र. तारो सारो सुखकर भलो धर्म पाम्यो मुनीन्द्र; लाखो यत्नो यदि जन करे तो येना तेह छोडु, नित्ये धर्म-प्रभु तुज कने भक्तिथी हाथ जोडुं. • १६. श्री शांतिनाथनी स्तुति. जाण्या जाये शिशु सकळना लक्षणो पारणाथी, शान्ति कीधी पण प्रभु तमे मातना गर्भमांथी; षट्खंडोने नव निधि तथा चौद रत्नो त्यजीने, पाम्या छो जे परम पदने आपजो ते अमोने.
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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