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ॐ अहँ नमः ॥ श्री चतुर्विंशति-जिन-स्तुतयः ॥
__ श्री विजयामृत सूरि विरचिताः (दहेरासरजीमां प्रभु पासे बोलवानी स्तुतिओ)
(छंद-मंदाक्रान्ता) (बोधागाधं सुपदपदवी-नीरपूराभिरामं-ए राग)
१. श्री ऋषभदेव प्रभुनी स्तुति. ' जेणे कीधी सकल जनता नीतिने जाणनारी, त्यागी राज्या-दिक विभवने जे थया मौनधारी व्हेतो कीधो सुगम सबळो मोक्षनो मार्ग जेणे वन्दु छु ते ऋषभजिनने धर्म धोरी प्रभुने.
२. अजितनाथ प्रभुनी स्तुति. देखी मूर्ति अजित जिननी नेत्र मारां ठरे छे. ने हैयुं आ फरी फरी प्रभु ध्यान हेर्नु धरे छे; आत्मा म्हारो प्रभु तुज कने आववा उल्लसे छे, आपो एवं बळ हृदयमां माहरी आश ए छे.
३. श्री संभवनाथनी स्तुति. जे शांतिना सुख सदनमां मुक्तिमां नित्य राजे, जेनी वाणी भविक जननां चित्तमां नित्य गाजे; देवेन्द्रोनी प्रणय भरनी भक्ति जेनेज छाजे, वन्दु ते सं-भवजिन तणां पाद पद्मे हुं आजे.
४. श्री अभिनंदन स्वामिनी स्तुति. चोथा आरा रूप नभ विषे दीपता सूर्य जेवा,