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________________ श्री वैराग्य शतक धाती कर्मो रूप मृग विषे केसरी सिंह जेवा; साचे भावे भविक जनने आपता मोक्ष मेवा. चोथा स्वामी चरण युगले हुं चहुं नित्य रेवा. ५. श्री सुमितनाथ स्तुति आ संसारे भ्रमण करतां शान्ति माटे जिनेन्द्र, देवो सेव्यां कुमति वशथी में बहुए मुनीन्द्र, तोए नाव्यो भव भ्रमणथी छुटकारो लगारे, शान्ति दाता सुमति जिनजी देव छे तुं ज मा रे. ६. श्री पद्मप्रभस्वामिनी स्तुति. . सोना केरी सुर विरचिता पद्मनी पंक्ति सारी, पद्मो जेवा प्रभु चरणना संगथी दीप्ति धारी; देखी भव्यो अति उलटथी हर्षना आंसु लावे, ते श्री पद्म-प्रभ चरणमां हुं नमुं पूर्ण भावे. ७. श्री सुपार्श्वजिन स्तुति. आखी पृथ्वी सुखमय बनी आपना जन्म काले, भव्यो पूजे भय रहित थै आपने पूर्ण व्हाले; पामे मुक्ति भव भय थकी जे स्मरे नित्यमेव. नित्ये वंदु तुम चरणमां श्री सुपाश्चेष्ट - देव. ८. श्री चंद्रप्रभस्वामिनी स्तुति. जेवी रीते शशि किरणथी चंद्रकान्त द्रवे छे, तेवी रीते कठिण हृदये हर्षनो धोध वहे छे;
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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