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________________ ११० श्री वैराग्य शतक : एक मोटो खाडो खोदवामां आवे छे. तेना छेडा उपर एक हाथणी-(बनावटी) ऊभी राखवामां आवे छे. तेनुं आलिंगन करवा-तेना स्पर्श सुखनो अनुभव करवा हाथी आंधळो बने छे, दोडतो आवे छे ने खाडामां जंपलाय छे. महावतो तेने पकडे छे, बांधे छे. अंकुशोना प्रहार करे छे. तेना माथे अंबाडी-उपडावे छे. अरे लाकडा पण खेंचावे छे. ते परवश थई बधु सहन करे छे. माटे हे चेतन ! स्पर्शनेन्द्रियने वश थई हाथीनी माफक दुःखी न थतो (८३) (८५) रसनेन्द्रियमां लोलुप बनी मरण पामतां माछला. अतिचपल ऊंडा जलरूपी निर्भय गृहे वसतो हतो, स्वजातिसंगे रंगथी रमतो हतो सुख पामतो, ते मच्छ पण हा ? हृदयभेदक रीतथी य हणाय छे, जिह्वा विना ए कष्टमां कहे कोण कारण थाय छे. विवेचन-मोटा मोटा सरोवरोमां-अगाध-जलमां-जेनुं तळीयुं पण न देखाय एवा सागरमा रहेता माछलाओ मच्छीमारना हाथमां सपडाय छे मरणने शरण थाय छे जाळमां पकडाय छे. एमां जीभनी लोलुपत्ता एज निमित्त भूत छे. लोटनी गोळीयो बनावी तेमां लोढाना कांटा भरावी पाणीमां नाखवामां आवे छे ते खावानी लालचे माछलांओ ते लोटनी गोळीओ मुखमां ले छे ने गळामां
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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