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________________ श्री वैराग्य शतक १०९ वृक्षोथी दूर दूर चालजे ने मुक्ति मार्गमां आगळ वधजे. जेटलो ए वृक्षथी छेटो रहीश तेटलो जल्दी मुक्तिनगरमां पहोंचीश आ शिखामण-भूलतो नहिं. शेठनी शिखामण झापा सुधी एवं करतो नहि बस-जा चाल्यो जा-आगळ वधने शिवसुखने अनुभव. (८३) इति संसारासारतावर्णनोऽधिकारः संपूर्णः । अथेन्द्रियपञ्चकविषयासक्तसत्त्वदुःखवर्णनम् ॥ (८४) स्पर्शनेन्द्रिय वश दुःखी हाथी. निर्जनवने निर्भय थईने विलसतो स्वेच्छा थकी, खावा तरूनां किसलयोने पान झरणां जल थकी, ते हस्ती वननो पण प्रहारो अंकुशोना जे सहे. स्पर्शनवशे थई रांकडो बहु भारने माथे वहे. विवेचन-इन्द्रियवश प्राणी बहु दुःखी थाय छे. एक एक इन्द्रियने आधीन थयेल पराधीन दशामां मुकाय छे. पांच इन्द्रियोमां प्रथम-स्पर्शनेन्द्रिय छे, तेना विषयमां आसक्त थवाथी घणां कष्टो सहन करवा पडे छे. एक स्पर्शनेन्द्रियने कारणेज हाथी जेवू श्रेष्ठ प्राणी परवश बने छे, मोटा मोटा जंगलमां-वनमां इच्छा प्रमाणे फरता हाथीने कोईनी बीक नथी. झाडना पान-फळ खावा, झरणाना पाणी पीवा ने मरजी प्रमाणे वर्तवं. जेने कोई कांई करी शके नहिं. एवां हाथीने पण स्पर्शनेन्द्रियना मोहथी पकडावू पडे छे. तेने पकडवा माटे
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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