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श्री वैराग्य शतक (८३) जो मोक्षमां जवा इच्छा होय तो विषय
रूपी झेरी झाडनी छायामांये न बेसो. मुक्ति नगरमां जो जवा इच्छा हृदयमां छे तने. विश्रान्ति लेतो नव घडीए विषय विष वृक्षो तळे, छाया य तेहनी सत्त्वनाशक भ्रान्तिकारक थाय छे. पछी मुकित पथमां जीवथी पगलुं य नव मुकाय छे.
विवेचन-हे चेतन ! तने संसार दुःखथी भरेलो समजायो छे. तुं तेथी कंटाळ्यो छे. सुखथी भरेल मुक्ति पुरीमां जवा तने इच्छा थई छे. तेथी तें तेनो रस्तो लीधो छे-तुं मार्गे चडयो छे. हवे तने एक सूचना करवामां आवे छे. ए तुं भूलतो नहि. अहिंथी जतां रस्तामां तने थाक लागशे. रस्तो कांई नानो सूनो नथी, पन्थ लांबो छे. तने विश्राम लेवानुं मन थशे, ते वखते तुं थाक खावा ज्यां त्यां बेसी न जतो, विचारीने बेसजे. रस्तामां मोह राजाए डगले ने पगले झेरी झाडो वाव्या छे. तेनुं नाम छे. 'विषयवृक्ष' एनी नीचे तो तुं भूलेचूके पण न बेसतो. एनी छायामां बेसीश तो पण तने तेनुं झेर चडशे, तारी बधी शक्ति हणाई जशे, तारी चेतना नाश पामशे पछी तुं मुंझाइश. तने भ्रम थशे के हवे आम जवानुं के तेम. पछी मुक्ति मार्गमां तो ताराथी एक डगलुं पण आगळ वधी शकाशे नहिं तने ए झेरनुं घेन चडशे ने तुं त्यां ने त्यां पड़ी रहीश माटे ए